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१८. सह भयानक तासु नाशन को सुनुरूप समान है। ( श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, दयानतराव ) १६. हरिवंश सरोजन को रवि हो, बलवन्त महन्त तुमी कवि हो । ( श्री महावीर स्वामीपूजा, वृंदावन ) २०. मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर ममता में अटकाया हूँ । ( श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगलकिशोर जैन 'मुगल' ) अपादान कारक - ( क्रिया जिसके कारण अलग होना प्रकट करें अबबा 'कारण से' अर्थ प्रस्तुत हो ) से, तें ( कारण से अर्थ में )
१८. तातें तारे बड़ी भक्ति - नौका-जग नामी ।
( श्री बीस तीर्थ कर पूजा, व्यानतराय )
१८. सागर से तिरे नहि भव में परे ।
( श्री सम्मेद शिखर पूजा, रामचन्द्र ) २०. तुम तो अविकारी हो प्रभुवर । जग में रहते जग से न्यारे । ( भी देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जैन 'युगल' )
सम्बन्ध कारक ( किया के अन्य कारकों के साथ सम्बन्ध प्रकट करने वाला )
का, की, के, रा, री, रे, ना, नी, ने
१८. गुरु की महिमा बरनी न जाय ।
( भी देवशास्त्र गुरुपूजा, ध्यानतराय) ९९. अश्वसेन के पारस जिनेश्वर, चरण तिनके सुर सये । ( श्री पार्श्वनाथ जिनपूजर असतावररत्न ) २०. यह सब कुछ लड़ को क्रीड़ा है, मैं अब तक जान नहीं पाया । ( श्री देवशास्त्र गुरुपूचा 'युगल' )
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अधिकरण कारक - ( किया होने का आधार स्थान व समय ) में, पे, पर १८. सबको छिन में जो जंग के मेद हैं। ( श्री बीस तीर्थ कर पूजा, व्यानतराय ) १६. जयशान्तिनाथ चिह्न पराब, भवसागर में अद्भुत जहाज । ( भी शान्तिनाथ जिनपूर, बावन ) २० सद्दर्शन-बोध-चरण-पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण । ( श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जंन 'युगल' )