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( २५५ ) १६. रंचक नहि मटकत रोम कोय ।
(श्री सप्तपिपूजा, मनरंगलाल) २०. मुनिधर्म तनों नहि रहे लेश ।
(श्री तीस बोबीसी पूजा, रविमल)
१८. उद्यम हो न देत सर्व जगमाहि भरयो है।
(भी बीस तीर्थकर पूजा, धानतराय) १९. पर को देख गिलानि न आने ।
(श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी) २०. मुझको न मिला सुख क्षण भर भी, कंचन कामिनि-प्रसावों में ।
(श्री बेवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जन 'युगल') विस्मय वाचक अव्यय
अहो१६. नमन करत चरनन परत, अहो गरीब निवाज ।
(श्री सप्तर्षि पूजा, मनरंगलाल) २०. उस संसार भ्रमणते तारो अहो जिनेश्वर करुणावान ।
(श्री तीस चौबीसी पूजा, रविमल)
सामान्य अव्यय
१८. केवल बर्शनाबरण निवार।
(श्री बृहत् सिर चक्र पूजाभाषा, बानतराय) १६. केबल सहि मविश्वसर तारे।
(श्री महावीर स्वामी पूजा, यानतराय) २०. केवल रवि-किरणों से जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर ।
(श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जैन 'गुगल') और१६. इस कानहीं सो भरत सीमा, और सब पर पेशवा ।
(बी रत्नत्रय पूजा, चामतराय) १६. केवड़ा गलाब और केतकी नाइके ।
(श्री पार्वनाब बिनपूजा, बख्तावररल)