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बौंसवीं शती के कविवर भगवानदास बारा रचित 'श्री सत्यार्थपून पूषा' नामक पूजाकाव्य कृति में कवित्त वृत्त के अभिदर्शन होते हैं।'
जन-हिन्दी-पूजा-कायों में यह वृत्त शान्तरस के उनक मे सफलतापूर्वक हुआ है। चामर
चामर वणिक छन्दों में समवृत का एक भेद है। हिन्दी में यह वृत्त अधिकांशत: मुड-वर्णनों में वीररसात्मक अभिव्यक्ति में व्यवहत है । जैनहिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि बसावररत्न ने चामर वृत्त को शान्तरस के प्रकरण में प्रयुक्त किया है।' तोटक
वणिक छन्दों में समवृत्त का एक भेद तोटक वृत्त है । जैन-हिन्दी-पूजा
विमल विमल वाणी श्री जिनवर बखानी, सुन भये तत्व ज्ञानी ध्यान-आत्म पाया है। सुरपति मन मानी सुर गण सुख दानी, सुमव्य उर आना, मिथ्यात्व हटाया है । समझहिं सब नीके, जीव समवशरण के, निज निज भाषा मांहि अतिशय दिखानी है। निरअक्षर अक्षर के, अक्षरन सों शब्द के शब्द सों पद बने, जिन जु बखानी है । -श्री तत्त्वार्थ सूत्र पूजा, भगवानदास, सगृहीत ग्रंथ-जैन पूजापाठ संग्रह,
भागचन्द्र पाटनी, न० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ४११ । २. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञान मण्डल
लिमिटेड, बनारस, प्रथम संस्करण, संवत् २०१५, पृष्ठ २८८ । ३. केवड़ा गुलाब और केतकी चुनायकें।
धार चर्न के समीप काम को नस इके ।। पार्श्वनाय देव सेव आपकी करू सदा । दीजिए निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ।। -श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, सगहीतनयराजेश नित्य
पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ११८ । ४. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा. धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशक
ज्ञान मण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्करण २०१५, पृष्ठ ३३० ।