________________
( २११ )
बीसवीं सती के हीराचंद ने 'श्री चतुर्विशति तीर्ष कर समुन्वय पूजा' में सार छंब का प्रयोग सफलतापूर्वक किया है । इसके अतिरिक्त इस गाती के अन्य कविवर जिनेश्वरदास कृत 'श्री नेमिनाथ जिनपूजा' और 'बी बाहबलि स्वामी पूजा' नामक पूजाओं में सार छंब का प्रयोग हुमा है। इस प्रकार जैन-पूजाओं में यह छन्द शान्त रसोद्रेक के लिए प्रयुक्त हना है। हरिगीतिका
हरिगीतिका मात्रिक सम छन्द का एक भेद है।
जहाँ तक रस-परिपाक का प्रश्न है यह छन्द हिन्दी में सभी प्रकार की भावानुमतियों की अभिव्यंजना के अनुकूल रहता है। अपनी मध्यविसंबित गति के कारण इसमें कथा का सुन्दर निकाह होता है।
जैन-हिन्दी-पूजा-काध्य में अठारहवीं शती से इस छन्द का प्रयोग मिलता
१. पावन चन्दन कदली नन्दन, घसि प्यालो भर लायो।
भव माताप निवारण कारण, तुम ढिंग आन बढ़ायो ।
-श्रीचतुर्विशति तीर्थ कर समुच्चय पूजा, हीराचन्द, संगृहीतब-नित्य नियमविशेष पूजन संग्रह, सम्पा० व प्रकाशिका-ब. पतासीबाई जैन,
गया (बिहार), पृष्ठ ७२। २. श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, संगृहीतनथ-जनपूजा पाठ संग्रह,
प्रकाशक-भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७,
पृष्ठ १११। ३. श्री बाहुबलि स्वामीपूजा, जिनेश्वरदास, संगृहीतग्रय-जनपूजा पाठ संग्रह,
प्रकाशक-भागचन्द्र पाटनी, नं. ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७,
पृष्ठ १६६। ४. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशक
ज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्क० सवत् २०१५, पृष्ठ ८८१ । ५. हिन्दी कवियों का छंदशास्त्र को योगदान, स्व. डा० जानकी नाप सिंह _ 'मनोज', विश्वविद्यालय हिन्दी प्रकाशन, लखनऊ विश्वविद्यालय, सखनऊ,
सस्क० सवत् २०२४ वि०, पृष्ठ ७७ । ६. जैन हिन्दी काव्य में छन्दोयोजना, आदित्य प्रचंडिया 'दीति', प्रकाशक-चैन
मोध अकादमी, आगरा रोड, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ३२ ।