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काव्य कृतियों 'श्रीचन्द्रप्रभ जिनपूजा" और 'श्री महावीर स्वामी पूजा में अवतार छन्द का सफलतापूर्वक व्यवहार किया है ।
बीसवीं शती के भविलालजू रचित 'श्री सिद्ध पूजा भावा' में भी यह छर उल्लिखित है।'
जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अवतार छन्द शान्तरस की अभिव्यक्ति में ज्यबहत है। उपमान
मात्रिक सम छन्द का एक भेव उपमान छंव है ।
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में बीसवीं शती के कविवर पूरणमल द्वारा प्रणीत 'भी चांदनपुर स्वामी पूजा' नामक कृति में उपमान छन्द व्यवहृत है। इसके
१. गंगा हृद-निरमल नीर, हाटक भगभरा।
तुम चरन जजों वरवीर, मेटो जनम जरा ।। श्री चंदनाप दुतिचन्द, चरनन चंद लगे । मन वच तनः जजत अमंद, आतम जोति जमे ।।
-श्री चन्द्रप्रभु जिनपूजा, संगृहीतग्रंथ-ज्ञानपीठ पूजाजलि, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १६५७ ई०,
पृष्ठ ३३३ । २. श्री महावीर स्वामी पूजा, धन्दावन, संगृटोतमथ-राजेश नित्य पूजा पाठ
संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हरिनगर, अलीगढ, १६७६, पृष्ठ १३२ । ३. श्री सिद्ध पूजा भाषा, भविलालजू, संगृहीत अंध-राजेश नित्य पूजापाठ
सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वसं, हरिनगर, अलीगढ़, सस्करण १६७६,
पृष्ठ ७१। ४, छन्दः प्रभाकर, जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', प्रकाशिका-पूर्णिमादेवी धर्मपत्नि
स्व. बाबू जगलकिशोर, अगन्नाथ प्रिंटिंग प्रेस, बिलासपुर, संस्करण
१६६० ई०, पृष्ठ ५६ । ५. क्षीरोदधि, से भरि नीर, कंचन के कलशा।
तुम चरणनि देत चढ़ाय, आवागमन नशा ॥ चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव माता निवार, तुम पद बलिहारी॥ , -श्री पावनपुर स्वामी. पूजा, पूरणमल, संग्रहीतमन्य-जनपूजापाठ संग्रह
भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कसकता-७, पृष्ठ १५९ ।