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विवेच्य काव्य में मात्रिक समछन्दों की संख्या उन्नीस है, असम मात्रिक छन्दों की संख्या केवल दो है तथा मात्रिक विषम छन्दों की संख्या मात्र को है। जहाँ तक णिक वृतों का प्रश्न है समग्र पूजा-काव्य में उनके प्रयोग की संख्या मात्र नौ है । इस प्रकार पूजा-काव्य के प्रणेताओं को वणिक वृतों की अपेक्षा मात्रिक छन्दों का प्रयोग अधिक आनकल्य रहा है यहां हम इन छन्दों का अध्ययन मात्रा-विकास को दृष्टि से पहले मात्रिक छन्दों का करेंगे और उसके उपरान्त अकारावि क्रम से वर्णिक वृतों को अपने विवेचन का विषय बनायेंगे। मात्रिक समछन्द चोबोला
बोबोला मात्रिक समछन्द का एक भेद है। हिन्दी में यह छन्द वीर तथा श्रृंगार रसोद्र के के लिए उल्लिखित है। जन-हिन्वी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के पूजाकार वृन्दावन ने 'प्राकृत पैंगलम' के लक्षणों के आधार पर घोबोला छन्द का प्रयोग 'श्रीचन्द्रप्रभु जिन पूजा' नामक कृति में शांत रस के परिपाक के लिए किया है। अडिल्ल
मात्रिक समछन्द का एक भेद अडिल्ल छन्द है।' सामान्यतः हिन्दी में वीररसात्मक अभिव्यक्ति के लिए अडिल्ल छन्द का प्रयोग हुआ है।
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य के रचयिताओं ने हिन्दी कवियों की नाई अडिल्ल छन्द के नियमों में पर्याप्त परिर्तन किया है। अठारहवीं शती के कविवर १. जगन्नाथ प्रसाद भानु', छन्दः प्रभाकर, प्रकाशिका-पूर्णिमा देवी, धर्मपत्नि
स्व० बाबू जुगल किशोर, जगन्नाथप्रिंटिंग प्रेस, विलासपुर, संस्करण १६६० ई०, पृष्ठ ४६ ।। आठों दरब मिलाय गाय गुण, जो भविजन जिन चंद जजें। ताके भव-भव के अघभाजें, मुक्तिसार सुख ताहिं सजें॥
-श्रीचन्द्रप्रभु जिनपूजा, वृन्दावन, संगहीतग्रंथ-ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक, -अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्रो, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, प्रथम संस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ ३३८ । हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमंडल लिमिटेड, बनारस, संस्करण संवत् २०१५. पृष्ठ १०।