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इस प्रकार व्यतिरेक मसंकार का व्यवहार उन्नीसवी सती पूजा-कायों केहीमा । व्यतिरेक अलंकार का व्यवहार कवि ने अबरस माता की पल-परिमा अपवा सौन्दयाभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध उपमानों को हॉन आहाराकर ही सम्पन्न किया है । इस प्रकार की अभिव्यक्ति में इन कवियों को आशातीत सफलता प्राप्त हुई है।
उपयंकित विवेचन से यह स्पष्ट है कि जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में किनकिन अलंकारों का किस विधि प्रयोग हुआ है । इन अलंकारों के प्रयोग द्वारा इन कषियों को अपने आचार्यत्व पदर्शन करने का लक्ष्य नहीं रहा है। उन्हें मूलत : अभिप्रेत रहा है अपनी भक्त्यात्मक भावना को सरल विधि से अमित करना । इस वृष्टि से इन कवियों के द्वारा अलंकारों का प्रयोग समसफल ही माना जायेगा। विविध अलंकारों के व्यवहार से कवियों की मायात्मक-मावनाको उत्कर्ष प्राप्त हुआ है।