________________ test सती प्रथाकवि कमलनयन प्रयत भीपंचकल्याणक पूज्य मात में बन ब्यबहार टिगोचर होता है। बीसवी सती के पूजा पिता जिवावास विरचित 'भो नाममपूजा' नामक रचना में एप इसी आशय के गृहीत है। फल-कलं मोक्ष प्रापयति इति फलम् / फल का लौकिक मर्थ परि. नाम है। न धर्म में फल शम्द का प्रयोग विशेष मर्य में हमा है। पूजा प्रसंग में मोक्ष पद को प्राप्त करने के लिए आपण किया गया द्रव्य वस्तुतः फल, कहलाता है।' बन-हिन्दी-पूना में कुलवाई कर्म के फल को नाश करने के लिए मोबा का बोष देने वाले वीतराग प्रमो के मार्ग सरस, पके फल जाते है फलस्वरूप माल को आत्मसिदि म मोम फल प्राप्त हो। मैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में मठारहवीं शती के पूजा कवि दयानतराप ने 1. एपी कृष्णागर कपूरले, अरू दश विधिधूप सम्हारि हो। जिनणी के आगे खेचते वसु कर्म होय परि छारि हो॥ -श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित / 2. दशविधि धूप हुताशन माहीं खेय सुगंध बड़झवी। बष्टकरम के नाश करन को श्री जिनाचरण चढ़ावो।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय, अष्टकर्मदहनाय धूपं नियंपामीवि स्वाहा / -श्री चन्द्रप्रभुपूजा, जिनेश्वरबास, संग्रहीत प-जन पूजापाठ संग्रह, प्रकाशक-भागचन्द पाटनी, नं० 62, नलिनी सेठ रोग, कनकना-७, पृष्ठ 101 / 3. वसुनंदि श्रावकाचार, 458, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोग, भाग 3, जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, 2026, पृष्ठ 76 / 4. कटुक कर्म विपाक विनाशनं सरस पक्वफल बज डौंकनं / बहति. मोमफलस्य प्रभोः पुर, कुरुत सिटि फलाय महाजना // -जिमपूजा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, सावं सताम्बी स्मृति पंच, प्रकाशक-श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, 136, कादन स्ट्रीट, कलकत्ता-७, संस्करण 1965 ई०, पृष्ठ 55 /