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प्रवन नामक काय कृति में 'मल शब्द इसी वर्ष की स्थापना
चन्दन-दिवाल्हाधने' धातु से चन्वयति अह लादयति इति सम्बनम । सफिक जगत में चन्दन एक वृक्ष है जिसकी लकड़ी के लेपन का प्रयोग ऐहिक शीतलता के लिए किया जाता है । जैनदर्शन में 'चन्दन' शम्ब प्रतीकार्ष है। वह सांसारिक ताप को शीतल करने के अर्थ में प्रयुक्त है।' बैन-हिन्दी पूजा में सम्पूर्ण मोह रूपी अंधकार को दूर करने के लिए परम शान्त वीतराग स्वभावयुक्त जिनेन्द्र भगवान को केशर-चन्दन से पूजा की जाती है। परिणामस्वरूप हार्दिक कठोरता, कोमलता और विनय प्रियता में परिवर्तित होकर प्रकट हो। ऐसी अवस्था प्राप्त होने पर भक्त के लिए सम्मपर्शन का सन्मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।'
जैन-हिन्दी-पूजा-काम्य में चन्दन शब्द का प्रयोग उक्त अर्थ में हमा है।
१. मैं तो अनादि से रोगी है, उपचार कराने आया है।
तुम सम उज्ज्वलता पाने को उज्ज्वल जल भर लाया हूँ।
-श्री पंचपरमेष्ठी पूजन, राजमल पवैया, संगृहीतग्रंथ-ज्ञानपीठ पूजांजलि, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, प्रथम संस्करण १६६६, पृष्ठ १२७ ।
२. सागार धर्मामृत, आशाधर, प्रकाशक-मूलचन्द किशनदास कापड़िया,
सूरत, प्रथम संस्करण, वीर सं० २४४१, श्लोक स० ३०-३१, पृष्ठ
१०१-१०५। ३. सकल मोह तमिन विनाशनं,
परम पीतम भावयुतं जिन विनय कुम्कुम चन्दन दर्शनेः सहज तत्व विकाश कृतेऽचंये।
-जिनपूजा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, शताब्दी स्मृति प्रथ, साई शताब्दी महोत्सव समिति, १३६, काटन स्ट्रीट, पालकता-७ अन् १९६५, पृष्ठ ५४ ।