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श्री महावीरस्वामी पूजा - अन्त में तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी की
पूजा की जानी चाहिए ।'
शांतिपाठ -
मैं देव श्री अर्हन्त पूजूं सिद्ध पूजूं चाव सों, आचार्य श्री उवज्ञाय पूजूं साधु पूजूं भाव सों। अर्हन्त-भाषित वेन पूजूं द्वादशांग रचे गनी, पूजूं दिगम्बर गुरुचरन शिव हेत सब आशाहनी ॥।'
के पश्चात महार्थ मोक्ष स्थली स्थान से आरम्भ कर पूरी परिक्रमा तक समाप्त कर देना चाहिए । अघं बार-बार नहीं लेना चाहिए ।
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शांतिनाथ मुख शशि उनहारी । शील- गुणव्रत-संयमधारी । लखन एक सौ आठ विराजे । निरखत नयन कमल दल लाजे ॥ पंचमewafaa धारी। सोलम तीर्थकर सुखकारी । इन्द्र नरेद्र पूज्य जिन नायक । नमो शांतिहित शांति विधायक ॥। for face पहुचन को बरवा। दुदुभि आसनवाणी सरसा । छत्र चमर पामंडल भारी । ये तुव प्रातिहार्य मनहारी ॥
शांति जिनेश शांति सुखदाई । जगत्पूज्यपूजों शिर नाई ।
परम शांति ही हम सबको पढ़ें तिम्हें पुनि चार संघ को ॥
पूजें जिन्हें मुकुट हार किरीट लाके ।
इंद्रादि देव अरु पूज्य पदाज जाके ॥
सो शांतिनाथ वरवंश जगत्प्रदीप ।
मेरे लिए कहिं शांति सदा अनूप ॥
संपूजकों को प्रतिपालकों को यतीन को और यतिनायकों को ।
राजा प्रजा राष्ट्र सुदेश को ले कीजं सुखी है जिन शांति को दे ॥
हो सारी प्रजा को सुख बलयुत हो धर्मधारी नरेशा ।
होवे वर्षा समं पे तिलभर न रहे व्याधियों का अंदेशा || हो चोरी न जारी सुसमय बरते हो न दुष्काल भारी ।
१. मनरंगलाल, श्री महावीरस्वामीपूजा, संगृहीतग्रंथ-सत्यार्थयज्ञ, प्रकाशक व सम्पादक -- पं० शिखर चन्द्र जैन, जवाहरगंज, जबलपुर, म० प्र० अगस्त १६५० ई०, पृष्: १६६-१७४ ।
२. ज्ञानपीठ पूजांजलि, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १६५७ ई० पृष्ठ १२६ ।