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(५) नैबेद्य - गिरी की पिटे अथवा टुकड़ियों को पareer अथवा शुद्ध खांड में पाग कर रखना चाहिए।
(६) दीपगिरी की चि अथवा दुकड़ियों को केशर चंदन में रंगकर अथवा यदि सम्भव हो तो घृत और कपूर का जला हुआ दीप रखा जाता है ।
(७) धूप- चंदन चूरा तथा धूप धूरा,
कभी-कभी यदि चंदन चूरा पर्याप्त न हो तो अक्षत में उसे ही मिलाकर व्यवस्थित कर लिया जाता है ।
(८) फल-बादाम, लोग, बड़ी इलायची, काली मिर्च, कमल-घटक, कवी आदि शुष्क फलों का प्रक्षालन कर पाल में रखना चाहिए ।
महार्थ
पाल के बीच में इन अष्ट द्रव्यों का मिश्रण महार्थ का रूप ग्रहण करता है । इन अष्ट द्रव्यों को थाल में सजो कर उनका क्रम निम्म फलक के अनुसार होना चाहिए
महार्ष
पूजन पात्रों की संख्या
पूजन में काम आने वाले पात्रों के प्रकार और संख्या निम्न प्रकार से आवश्यक होती है, यथा
१. थाल नग २
२. तरतरी नग २
३. कलश नग २ ( छोटे आकार के जल, चंदन के लिए)
४. चम्मच नग २
५. स्थापना पात्र ठोना-नग १
६. जल-चन्दन चढ़ाने का पात्र नग १