________________
और महत्वपूर्ण है। इसके दर्शन को महिमा अनन्त है।' भी सम्बगिरि पूजा में सम्मागिरि क्षेत्र की भक्ति की गई है। यह क्षेत्र बंग-मंग के पास कलिग देश वर्तमान में उड़ीसा में स्थित है। इस क्षेत्र से राजा दशरथ सुत तथा पंच शतक मुनियों ने अष्ट कर्म क्षय कर मोक्ष प्राप्त किया था।' इस क्षेत्र पूजा की महिना जागतिक मति प्रदान करने के माय हो शिवपर प्राप्त कराने पर निर्भर करती है। श्री पावापुर सिख क्षेत्र पूजा में पावापुर क्षेत्र की वंदना की गई है। यह क्षेत्र आधुनिक पटना में स्थित है। यहां से चौबीसवें तीर्थंकर म. महावीर निर्वाण-पद को प्राप्त हुए। इस क्षेत्र की बंदना करने से धन-धान्याधिक सुखद पक्षाओं को प्राप्ति तो होती ही है साथ
१-जे नर परम सुभावन ते पूजा करें।
हरिहलि चक्री होय राज्य षटखंड करें। फेरि होंय धरणेन्द्र इन्द्र पदवी घरें। नाना विधि सुख भोगि बहुरि शिवतिय वरें।
-श्री सम्मेदाचल पूजा, जवाहर लाल, बहजिनवाणी संग्रह, सम्पादक-प. पन्नालाल वाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, प्रथमसंस्करण १९५६ ई.,
पृष्ठ ४८६ । २-जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, श्री कामता प्रसाद जैन, श्री दिगम्बर जैन
परिषद् प्रकाशन, दिल्ली, तृतीय संस्करण १६६२, पृष्ठ १०३ । ३-दशरथ राजा के सुत अति गुणवान जी।
और मुनीश्वर पंच संकड़ा जान जी ।। ---श्री खण्डगिरि क्षेत्र पूजा, मुन्नालाल, जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र
पाटनी, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५५ ।। ४-श्री खण्डगिरि उदयगिरि जो पूजे काल ।
पुत्र-पौत्र सम्पति लहें पावै शिव सुख हाल । -~-श्री खण्डगिरि क्षेत्र पूजा, मुन्ना माल, जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र
पाटनी ६२, नलिनी सेठरोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५८ ।। ५-जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, श्री कामता प्रसाद जैन, दि० जैन परिषद्
प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ ४० । ६-जिहिं पावापुर छित अघाति, हत सन्मति जगदीश ।
भए सिद्ध शुभयान सो, जजोनाथ निज शीश ॥ -श्री पावापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा, दौलतराम, जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द पाटनी, ६२, नलिनीसेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १४७ ।