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(१२) है। ज्योतिष्क और व्यंतर देवों के असंख्याता संख्यात चैत्यालय स्थित है।' कृत्रिम चैत्यालय मनुष्य कृत है तथा वे मनुष्य लोक में व्यवस्थित हैं।
त्यवृक्ष, चैत्य सदन, प्रतिमा, विम्ब और मंदिरों की पूजा-अर्चा चैत्यमक्ति कहलाती है। चैत्यभक्ति के द्वारा परस्पर बैरभाव सौहार्द-विश्वास में परिणत हो जाते हैं।
बस्य भक्ति का महाफल विषयक उल्लेख जैन हिन्दी पूजा काव्य में किया गया है। धन-धान्य, सम्पत्ति, पुत्र, पौत्रादिक सुखोपलब्धि होती है, साथ ही कर्म-नाशकर शिवपुर का सुख भी प्राप्त होता है।' नंदीश्वर भक्ति___ मध्यलोक में आठवा द्वीप जम्बूद्वीप है। यह लवणसागर से घिरा हुमा है।' इस द्वीप में १६ वापियां, ४ अंजन गिरि, १६ वधिमुख और ३२ रतिकर नाम के कुल ५२ पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वत पर एक-एक चैत्यालय है।" १-कृत्याकृत्रिमचारूचंत्यनिलयान नित्यं त्रिलोकीगतान् ।
वन्दे भावनव्यन्तरान् द्युतिवान् स्वर्गामरावासगान् ।। -कृत्रिमचंत्यालय, ज्ञानपीठ पूजांजलि, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, प्रथम संस्करण १६५७, सं० डॉ० ए० एन० उपाध्ये, पृष्ठ १२४ । २-जयति भगवानहेमाम्भोज प्रचार विज़म्भिता
वमर मुकुटच्छायोद्गीर्ण प्रभापरिचुम्बितो। कलुष हृदया मानोदभान्ताः परस्पर वैरिण. । विगत कलुषाः पादौ यस्य प्रपद्यविशश्वसुः ।।
-चत्य भक्ति, आचार्य पूज्यपाद, दशभक्त्यादि संग्रह, पं० सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात,
पृष्ठ २२६ । । ३-तिहूँ जग भीतर श्री जिनमन्दिर, बने अकीर्तम अति सुखदाय ।
नरसुर खगकर वन्दनीक, जे तिनको भविजन पाठ कराय ।। धनधान्यादिक संपति तिनके, पुत्रपौत्र सुख होत भलाय । चक्री सुर खग इन्द्र होय के, करमनाश शिवपुर सुख थाय ॥ -श्री अकृत्रिम चैत्यालय पूजा, कविवर नेम, जैन पूजा पाठ संग्रह,
भागचन्द्र पाटनी, ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २५५ । ४- जम्बूद्वीप लवणादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ।।
-तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वामि, अध्याय ३, श्लोक ७, सम्पादक पं० सुखलाल
संघवी, भारत जैन महामण्डल वर्धा, प्रथम संस्करण १६५२, पृष्ठ १२७ । ५-जनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग २, क्ष. जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण १९७१, पृष्ठ ५०३ ।