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( ८७ ) उदारता वस्तुतः उस्लेखनीय है। यहां पूमक द्वारा चैत्यालय तथा धर्म-रमा, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु के लिए, राष्ट्र के लिए, नगर के लिए तथा राषा के लिए शान्ति-कामना की गई है।'
हिन्दी अन-प्रणा-काव्य में तोपकर को माध्यम मानकर पूजक शान्ति भक्ति के मर्जन की बात करता है। विशेषकर शान्तिनाथ भगवान की पूजा के द्वारा अपूर्व शान्ति भक्ति की गई है। इस एष्टि से कविवर वृन्दावनवास विरचित 'श्री शान्तिनाथ पूजा' उल्लेखनीय है। पूजक कवि मन, वचन और कार्य पूर्वक शान्ति नाथ प्रभु की पूजा करता है और कामना करता है कि उसके जन्मगत पातक शान्त हो जाये तथा मन-वांछित सुख प्राप्त हो। इतना ही नहीं वह अन्ततोगत्वा शिवपुर की सता प्राप्त करने की मंगल कामना करता है। शान्ति स्थापना के लिए शान्ति यंत्र की पूजा का भी विधान है।' शान्ति भक्ति को आवश्यकता असंदिग्ध है । जागतिक जीवनचर्या के लिए भी शान्ति की आवश्यकता अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है और आध्यात्मिक
१. संपूजकानां प्रतिपालकाना यतीन्द्र सामान्य तपोधनानाम ।
देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांति भगवान जिनेन्द्रः ।। शान्ति भक्ति, आचार्य पूज्यपाद, श्लोक १४, दशभक्त्यादिस ग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबर कांठा गुजरात, पृष्ठ १८१ । शांतिनाथ जिनके पद पंकज, जो भवि पूजें मन, वच, काय । जन्म-जन्म के पातक ताके, ततछिन तजि के जाय पलाय ॥ मन वांछित सो सख पार्वनर, बाँचे भगति भाव अतिलाय । ताते वृदावन नित वन्दे, जातें शिवपुर राज कराय ।।। -श्री शांतिनाथ जिनपूजा, दावन दास, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह,
राजेन्द्र मेटल वक्स, अलीगढ़, प्र० स० १९७६, पृष्ठ ११७ । ३. श्री जैन स्तोत्र संदोह, भाम २, श्री सागरचन्द्र सूरि, अहमदाबाद, प्रथम
संस्करण १६३६, श्लोकांक ३३ ।