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नयनंदीने अपने 'सकलविधि-विधान काव्य' नामक ग्रंथकी प्रशस्तिमें उन्हें महापंडित सूचित किया है और उनका उल्लेख निम्न पंक्रियोंमें किया है। साथ ही अपने सहाध्यायी प्रभाचन्द्रका स्मरण भी किया है।
यथा
पच्चक्ख-परोक्ख पमाणणीरे, णय-तरल तरंगालि गहोरे । वर सत्तभंग-कल्लोलमाल, जिणसासण-सरि णिम्मल सुसाल । पंडियचूडामणि विबुहचंदु, माणिक्कणंदि उप्पण्णु कंदु ॥
इन पद्योंमें ग्रन्थकर्ताने माणिक्यनन्दीको प्रत्यक्ष, परोक्ष प्रमाणरूप चंचल तरंग समूहसे गम्भीर, उत्तम सप्तभंगरूप कल्लोलमालास भूषित तथा जिनशासनरूप निर्मल सरोवरके सरोज तथा पंडितोंका चूडामणि प्रकट किया है, जिससे वे न्यायशास्त्रके अद्वितीय विद्वान जान पडते है। इनकी 'परीक्षामुख नामकी एक सुन्दर कृति है जो न्यायशास्त्रके दोहनस निकाले हुए अमृतके समान उपयोगी हैx यह मंक्षिप्त, सरल और अर्थगाम्भीर्यसे युक्त है तथा न्यायशास्त्रके प्रारम्भिक विद्वानों के लिये बड़े कामकी चीज है। परीक्षामुखकी रचना माणिवयनन्दीने न्यायशास्त्रको लक्ष्यमें रख कर ही की है उसमें प्रागमिक परम्परासे सम्बन्ध रखनेवाले अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा तथा नयादिके स्वरूपका समावेश नहीं किया गया है । परीक्षामुखमें छह अध्याय हैं । जिनमें प्रमाणका स्वरूप, संख्या, परोक्षप्रमाण, फल और प्रमाणाभास और प्रमाणका विषय विवेचन किया गया है, जो मनन करने योग्य है । इस पर विशाल टीका लिखी गई है। और अनेक टिप्पण ।
श्येताम्बरीय विद्वान् देवसूरिने तो 'प्रमाणनयतत्त्वालोककी रचना करते हुए परीक्षामुखके सूत्रोंको शब्द-परिवर्तनके साथ पूरे प्रन्थको अपना
असेसाण गंथम्मि पारम्मि पत्तो तवेयंग बीभष्व राईव मित्तो ॥ गुणावासभूश्रो सु-तेलोक्कएंदी, महापंडिओ तस्स माणक्कणंदी ॥
-सुदर्शनचरित प्रशस्ति, भामेर भंडार x अकलंकवचोम्भोधेरुद, येन धीमता । न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने ॥ --प्रमेयरत्नमाला