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भिन्न हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं । चौथे श्रीनन्दी वे हैं जिनका उल्लेख होयसल वंशके शक सं० १०४७ के श्रीपाल त्रैविद्यवाले शिलालेखमें किया गया है । और पांचवें श्रीनन्दीका उल्लेख ऊपर किया जाचुका है । इन चारोंमें से किसी भी श्रनन्दीके साथ गुरुदास नामके विद्वानका कोई सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता, अतएव सामग्रीके अभाव में यह कहना कठिन है । कि प्रस्तुत श्रीनन्दी और गुरुदास कब हुए हैं। यह विशेष अनुसंधान की अपेक्षा रखता
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व प्रशस्ति 'भावशतक' नामक ग्रन्थ की है। जिसके कर्ता कवि नागराज हैं । कार्पाटि गोत्र रूप समुद्रकेलिये चन्द्रसम मुनि 'श्रीधन' हुए जो 'विद्याधर' इस नामसे लोक में विश्रुत हुए । इनका पुत्र द्यालपाल था और द्यालपालकी भार्या लक्ष्मीसे उत्पन्न पुत्र नागराज नामका हुआ। प्रस्तुत नागराज ही 'भाव' का कर्ता है। नागराज नामके कई विद्वान हुए हैं । समन्तभद्र भारतीनामस्तोत्रकं कर्ता भी नागराज हैं। और नागराज नामके एक कवि शक १२५३ में हो गए हैं ऐसा कर्णाटक कविचरितसे ज्ञात होता है । भावशतक के कर्ता नागराज क्या इन दोनोंसे भिन्न हैं या एक ही हैं । इसके जाननेका साधन श्रभीतक उपलब्ध नहीं है । वह विशेष अन्वेषण से प्राप्त हो सकेगा।
va प्रशस्ति 'तत्त्वसार- टीका' की है जिसके कर्ता भ० कमलकीर्ति हैं । मूल ग्रन्थ प्राचार्य देवसेनकी प्रसिद्ध कृति है जो विमलसेन गणधरक शिष्य थे । भट्टारक कमलकीर्ति काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगणके भट्टारक क्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति, संयमकोर्तिकी परम्परामें हुए और भ० अमलकीर्तिके शिष्य थे । उन्होंने कायस्थ भाथुरान्वयमें अग्रणी अमरसिंहके मानसरूपी अरविन्दको विकसित करनेके लिए दिनकर (सूर्य) स्वरूप इस टीकाकी रचना की है । अर्थात् यह टीका उनके लिये लिखी गई और उन्हें बहुत पसन्द आई है ।
एक कमलकीर्ति नामके विद्वान और हुए हैं जो भ० शुभचन्द्र के पट्टधर थे। महाकवि रहधूने अपने 'हरिवंशपुराण' की प्रशस्ति में उनका