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( ५६ ) था। इसके पुत्रका नाम विज्जलदेव था। सन्भव है इसके राज्यका विस्तार विलासपुर तक रहा हो।।
दूसरे परमादि या परमादिदेव ये हैं जिनका राज्य महोवामें था । जिसकी राजधानी खजुराहा थी। वीं सदी में वहाँ चन्देल राजाओंका व बल बढ़ा उसका प्रथम राजा नानकदेव था और पाठवां राजा धंगराजने, जैसा कि ईस्वी सन् १५४ के लेख से प्रकट है । इनमें एक राजा परमहया परमार्दिदेव नामका हो गया है जिसके यहाँ प्रसिद्ध श्राला ऊदल नौकर थे और जो पृथ्वीराज चौहानके युद्ध में पराजित हुए थे। युद्ध में राजा परमल हार गया था जिसका उल्लेख ललितपुरके पास मदनपुरके लेख २ में मिलता है। बहुत सम्भव है कि इसका राज्य विलासपुरमें रहा हो, क्योंकि इसके वहाँ राज्य होनेकी अधिक सम्भावना है। यदि यह अनुमान ठीक हो तो यह ग्रन्थ विक्रमकी १३वीं शताब्दीकी के प्रारम्भ की रचना हो सकती हैं।
८३वीं प्रशस्ति सिद्धिविनिश्चय-टीकाकी है जिसके कर्ता प्राचार्य अनन्तवीर्य हैं जो रविभद्रके पादोपजीवी अर्थात् उनके शिष्य थे। टीका कार अनन्तवीर्य आचार्य अकलंकदेवके ग्रन्थोंके मर्मज्ञ, विशिष्ट अभ्यासी और विवेचयिता विद्वान थे जो उनके प्रकरणोंके तलदृष्टा तथा व्याख्याता
१ देखो, इण्डियन एण्टी क्वेरी भाग १०
२ मदनपुरमें एक बारादरी है, जो खुली हुई ६ समचौरस खम्भोंस रक्षित है । इसके ग्वंभों पर बहुत ही मूल्यवान एवं उपयोगी लेख अंकित हैं। इनमें दो छोटे लेख चौहान राजा पृथ्वीराजके राज्य समयके हैं । जिनमें उक राजा परमादिको व उसके देश जेजा मकृतीको सं० १२३६ या 1182
A.D. में विजित करनेका उल्लेग्व है। इस मढनपुरको चन्देलवंशी प्रसिद्ध गजा मदनवर्माने वपाया था, इसीसे इसका नाम मदनपुर श्राज नक प्रमिति में श्रा रहा है।
-देखो, संयुक्रा प्रा. प्राचीन जैन स्मारक पृ० ५४