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भ० विद्याभूषणने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है उनमें ऋषिमण्डलयन्त्रपूजा, वृक्तलिकुडपूजा, चिन्तामणि पार्श्वनाथस्तवन, सिद्धचक्रमन्त्रोद्धार - स्तवन-पूजन | ये सब कृतियों देहलीके पंचायती मन्दिरके शास्त्र भण्डार में सुरक्षित हैं ।
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भ० श्रीभूषणने 'पाण्डवपुराण' की रचना सौर्यपुर (सूरत) के चन्द्रनाथ चैत्यालय में सं० १६५७ के पौष महीनेके शुक्लपक्ष तृतीयाके दिन समात की थी । और इन्होंने अपना 'शान्तिनाथपुराण' वि० सं० १६५३ के मार्गशीर्ष महीनेकी त्रयोदशी गुरुवारके दिन गुजरातके 'सौजित्रा' नामक नगरके भगवान नेमिनाथके समीप समाप्त किया था जिसकी श्लोक संख्या चार हजार पचीस है।
भट्टारक श्रोभूषणने 'हरिवंशपुराण' की भी रचना की है, जिसकी ३१७ पात्मक एक प्रति जयपुरके तेरापंथी बडामंदिरके शास्त्र भण्डारमें मौजूद है जिसका रचनाकाल सं० १६७५ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी है। जिसकी प्रतिलिपि सं० १७६७ जेठवदी ४ को पं० खतेसीने की थीx ।
ग्रन्थ-प्रशस्तियोंमें श्रीभूषणने अपनेसे पूर्ववर्ती अनेक पूर्वाचार्योंका स्मरया किया है । इनकी चौथी कृति 'अनन्तत्रत पूजा' है जो सं० १६६७ में रची गई है। यह प्रति १३ पत्रात्मक है और देहलीके पंचायती मंदिरके शास्त्रभण्डार में सुरक्षित है । पाँचवीं रचना 'ज्येष्ठ जिनवरव्रतोद्यापन' है। और छठी कृति 'चतुर्विन्शतितीर्थंकर पूजा' है। इन भट्टारक श्रीभूषणके शिष्य भ० ज्ञानसागर हैं जो 'भक्तामरस्तवनपूजन' के कर्ता हैं ।
७२वीं प्रशस्ति 'अजितपुराण' की है, जिसके कर्ता पं० श्ररुणमणि या लालमणि हैं जो भ० श्रुतकीर्तिके प्रशिष्य और बुधराघवके शिष्य थे । जिन्होंने ग्वालियर में जैन मन्दिर बनवाया था । इनके ज्येष्ठ शिष्य बुधरत्नपाल थे और दूसरे बनमाली तथा तीसरे कान्हर सिंह थे । प्रस्तुत अरुणमणि इन्हीं कान्हरसिंह के पुत्र थे । प्रशस्तिमें इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार
xदेखो, राजस्थानके जैनशास्त्र-भण्डारोंकी ग्रन्थ-सूची भा० २५० २१८