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इनमें सबसे पहली कृति चतुर्विंशति-संधान है, इस ग्रन्थके एक पथको हो चौबीस जगह लिखकर उसकी स्वोपज्ञटीका लिखी है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुति की गई है ।
दूसरी कृति 'सुख - निधान' है इसकी रचना कवि जगन्नाथने 'तमालपुर में की थी । इस ग्रन्थ में कविने अपनी एक और कृतिका उल्लेख " श्रन्यच्च”starfren' 'शृङ्गारसमुद्रकाव्ये' वाक्यके साथ किया है । तीसरी कृति 'श्वेताम्बर पराजय' है । इसमें श्वेताम्बर सम्मत केवलभुक्रिका सयुक्तिक निराकरण किया गया है। इस ग्रन्थमें भी एक और अन्य कृतिका उल्लेख किया है और उसे एक स्वोपज्ञ टीकासे युक्र बतलाया है । तदुक्र- - 'नेमिनरेंद्रस्तोत्रे स्वोपज्ञे' इम्पसे नेमिनरेंद्रस्तोत्र नामकी स्वोपज्ञकृतिका और पता चलता है । और उसका एक पद्यभी उद्धृत किया है जो अंतिम
में कुछ अशुद्धिको लिये हुए है। वह इस प्रकार है :
" यदुत तव न भुर्निष्टदुःखोदयत्वासनमपि न चांगे वीतरागत्वतश्च । इति निरूपमहेत् नह्यसिद्धाद्यमिद्धौ विशद-विशदडप्टीनां हृदुल्लासयुक्तौ ॥
इनकी एक और अन्य रचना 'सुषेण चरित्र' है जिसकी पत्र संख्या ४६, हे और जो सं० १८४२ की लिखी हुई है । यह ग्रन्थ भ० महेंद्रकीर्ति श्रामे शास्त्र भण्डारमें सुरक्षित है ।
इस तरह कवि जगन्नाथकी ६ कृतियों का पता चल जाता है। इनकी अन्य क्या रचनाएँ हैं, यह अन्वेषणीय है। इनकी मृत्यु कब और कहां हुई, इसके जानने का कोई साधन इस समय उपलब्ध नहीं है। पर इनकी रचनाओं के अवलोकनसे यह १७वीं १८वीं शताब्दीके सुयोग्य विद्वान् जाज पडते हैं।
५७वीं प्रशस्ति मौनव्रतकथा' की है, जिसके कर्ता भ० गुणचंद्रसूरि हैं। इनका परिचय २७वीं प्रशस्ति में दिया गया है ।
५८वीं प्रशस्ति 'षट्चतुर्थ- वर्तमान जिनार्चनकी' तथा १३२वीं प्रशस्ति 'अष्टमजिनपुराण संग्रह' (चंद्रप्रभपुराण) की है। इन दोनों ग्रंथोंके कर्ता पं० शिवाभिराम हैं । इनमें से प्रथम ग्रन्थको रचना मालवनाम देशमें स्थित