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पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे। भट्टारक पद्मनन्दीको पदावलियोंमें अपने समयक बहुत ही प्रभावशाली और विद्वान भट्टारक बतलाया है । इनके पट्ट पर प्रतिप्ठित होनेका समय वि० सं० १३७५ पाया जाता है । संवत् १४६५ और सं० १४८३ क विजोलियाके शिलालेखोंमें जिनकी प्रशंसा की गई है। और वहाँ के मानस्तम्भोंमें जिनकी प्रतिकृति भी अंकित मिलती है। इनके अनेक शिष्य थे। उनमें भट्टारक शुभचन्द्र इनके पट्टधर शिष्य थे, और दूसरे शिष्य भ० सालकीर्ति थे, जिनसे ईडरको भट्टारकीय गद्दीकी परम्परा चली है । यह अपने समयके बहुत ही प्रभावक तपस्वी और मंत्रवादी थे। इनके शिष्य-प्र-शिष्योंमें मतभेद हो जानेके कारण गुजरातकी गहीको दो परम्पराएँ चालू हो गई थीं। एक "भट्टारक मकलकीर्तिकी और दूसरी देवेन्द्र कीर्ति की।
श्रावकाचारमारोद्धार नामक ग्रन्थमें तीन परिच्छेद हैं जिनमें गृहस्थविषयक श्राचारका प्रतिपादन किया गया है । ग्रन्थमें रचनाकाल दिया हश्रा नहीं है जिमसे यह निश्चय करना अत्यन्त कठिन है कि यह ग्रन्थ कब रचा गया है ? ग्रन्थकी यह प्रति विक्रम संवत् १५६४ की लिखी हुई है। जिससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि मुनि पद्मनन्दी सं० १५६४ से पूर्ववर्ती हैं. कितने पूर्ववर्ती हैं यह नीचे विचारोंसे स्पष्ट होगा।
भगवती आराधनाकी पंजिकाx टीका जो संवत् १४१६ में चैत्रसदी
x“संवत् १४१६ वर्षे चैत्रसुदिपंचम्यां सोमवासरे सकलराजशिरोमुकुटमाणिक्यमरीचिपिंजरीकृतचरणकमलपादपीठस्य श्रीपेरोजसाहेः सकलसाम्राज्यधुरीविभ्राणस्य समये श्री दिल्यां श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे भट्टारक श्रीरत्नकीर्तिदेवपट्टोदयाद्रितरुणतरणित्वमुर्वीकुर्वाणं भट्टारक श्रीप्रभाचन्ददेव तस्छिष्याणां ब्रह्मनाथूराम इत्याराधनापंजिकायां (?) ग्रन्थ प्रारमपठनार्थ लिखापितम् ॥"