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(१६) प्रवाहमें शत्रुकुलका विस्तृत प्रभाव निमग्न हो जाता था और उनका मन्त्री हुबंडकुलभूषण भोजराज था। उसकी पत्नीका नाम विनयदेवी था जो अतीव पतिव्रता, साध्वी और जिनदेवके चरणकमलोंकी उपासिका थी । उससे चार पुत्र उत्पन्न हुए थे, उनमें प्रथम पुत्र कर्मसिंह जिसका शरीर भूरिरस्नगुणोंसे विभूषित था और दूसरा पुत्र कुलभूषण था जो शत्रुकुलके लिये कालस्वरूप था, तीसरा पुत्र पुण्यशाली श्रीधोषर, जो सघन पापरूपी गिरीन्द्र के लिये वज्रके समान था और चौथा गंगाजलके समान निर्मल मनवाला 'गङ्ग' । इन चार पुत्रों के बाद इनकी एक बहिन भी थी जो ऐसी जान पड़ती थी कि जिनवरके मुखसे निकली हुई सरस्वती हो, अथवा दृढ़ सम्यक्त्ववाली रेवती हो, शीलवती मीता हो और गुणरत्नराशि राजुल हो। ब्रह्मश्रुतसागरने स्वयं उसके साथ संघ सहित गजपंथ और तुंगीगिर प्रादिकी यात्रा की थी और वहाँ उसने नित्य जिन पूजनकर तप किया और संघको दान दिया था।
प्रशस्ति गत पयोंमें उल्लिखित भानभूपति ईडरके राठौर वंशी राजा थे। यह राव जोजी प्रथमके पुत्र और राव नारायणदासजीके भाई थे और उनके बाद राज्यपद पर आसीन हुए थे। इनके समय वि० सं० १५०२ में गुजरातक बादशाह मुहम्मदशाह द्वितीयने ईडर पर चढ़ाई की थी, तब उन्होंने पहाडोंमें भागकर अपनी रक्षा की। बादमें उन्होंने सुलह कर ली थी। फारसी तबारीखोंमें इनका नाम वीरराय नामसे उल्लेखित किया गया है। इनके दो पुत्र थे सूरजमल्ल और भीमसिंह । राव भाणजीने मं० १५०२ से १५२२ तक राज्य किया हैx । इनके बाद राव सूरजमल्लजी सं० १५५२ में राज्यापीन हुए थे। राव भाणजीके राज्यकालमें श्रुतसागरजीने उन पल्यविधानकथाकी रचना की है। इससे श्रुतसागरजीका समय विक्रमकी सोलहवीं शताब्दीका प्रथम द्वितीय चरण सुनिश्चित है।
ब्रह्म श्रुतसागरकी मृत्यु कहाँ और कब हुई इसका कोई निश्चित अाधार अब तक नहीं मिला।
x देखो, भारतके प्राचीन राजवंश भाग ३, पृष्ठ ४२७ !