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________________ प्रस्ताव ना प्रशस्ति-परिचय भारतीय पुरातत्त्वमें जिस तरह मूर्तिकला, दानपत्र, शिलालेख, स्तूप, मूर्तिलेग्व, कृप-बावड़ी, तड़ाग, मन्दिर प्रशस्तियों और सिक्के आदि वस्तुएँ उपयोगी और आवश्यक हैं। इनकी महत्ता भारतीय अन्वेषक विद्वानोंसे छिपी हुई नहीं है । ये सब चीजें भारतकी प्राचीन आर्य संस्कृतिकी समु. ज्वल धाराकी प्रतीक हैं । और इतिहासकी उलझी हुई समस्याओं और गुत्थियोंको सुलझानेमें अमोघ अस्त्रका काम देती हैं तथा पूर्वजोंकी गुणगरिमाका जीता-जागता सजीव इतिहास इनमें संकलित रहता है। इसी तरह भारतीय साहित्यादिके अनुसंधानमें ग्रन्थकर्ता विद्वानों. प्राचार्यो और भट्टारकोंद्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण ग्रन्थ-प्रशस्तियाँ भी उतनी ही उपयोगी और आवश्यक हैं जितने कि शिलालेख अादि । प्रस्तुत ग्रन्थमें संस्कृत प्राकृत भाषाक १७१ ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंका संकलन किया गया है जो ऐतिहासिक दृष्टिसे बड़े ही महन्वका है। ये प्रशस्तियाँ प्रन्थका विद्वानों और प्राचार्यो श्रादिके द्वारा समय-समय पर रची गई हैं। इन प्रशस्तियों में संघ, गण, गच्छ, वंश, गुरुपरम्परा, स्थान तथा समय संवतादिके साथ तत्कालीन राजाओं, राजमन्त्रियों, विद्वानों, राजश्रेष्ठियों और अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकर्ता विद्वानों तथा उनकी कृतियोंके नाम भी जहाँतहाँ दिये हुए हैं, जो अनुसन्धाता विद्वानों ( रिसर्चस्कॉलरों) के लिए • बहुत ही उपयोगी हैं । इन परसे अनेक वंशों, जातियों, संघों, गण-आच्छों
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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