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सत्या
[७७ फिर भी अंतध्य में कुछ न कुछ हानिकारकता हैं भविष्यमें ऐसा मौका न आने इसके लिये प्रायश्चित्तभी करे। __धर्मका फल सुख है और अधर्मका फल दुःख है । अतध्यभाषणसे कुछ न कुछ दुःख पैदा होता है इसलिये उसको दूर करने की ज़रूरत है । अतथ्य का फल अविश्वास है । एक डाकूके सामने आत्मरक्षा के लिये भी झूठ क्यों न बोला जाय किन्तु इसका फल यह अवश्य होगा कि वह विश्वास करना छोड़ देगा । आज हम झूठ बोलकर भले ही आत्मरक्षा करले परन्तु जब वह वञ्चित होगा तो भविष्य में कोई झूठ भी बोलगा तो वह विश्वास न करेगा, इसलिये झूठ बोलकर के भी आत्मरक्षा कठिन हो जायगी । एक रोगी को झूठा आश्वासन दिया जा सकता है, परंतु जब रोगी के साथ झूठ बोलने का नियम सा बन जायगा, तब रोगी का विश्वास उड़ जायगा । फिर आश्वासन देने पर भी वह विश्वास न करेगा, क्योंकि जब वह नीरोगी था तभी जानता था कि रोगी के साथ लोग झूठ बोलते हैं । इसलिये कभी कभी सच्चे आश्वासन पर भी वह विश्वास न करेगा। इसी प्रकार अन्यं अतथ्य भाषणों के विषय में भी समझना चाहिये ।
प्रश्न-जब अतध्य-भाषण निरर्थक और दुःखप्रद है तब अपवाद के रूप में भी उसका विधान क्यों किया गया !
उत्तर-बिलकुल निरर्थक तो नहीं कहा जासकता, क्योंकि बिलकुल निरर्थक होता तो झूठ बोलने का कष्ट ही कोई क्या उठाता ! जबतक लोग सत्यभाषण करते हैं तबतक उसकी ओट