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________________ सत्य ] [ ५९ विचार करके झूठ बोल जाना घोर प्रमाद है क्योंकि इससे अधिक - तर अकल्याण होने की सम्भावना है । अगर रोगी ऐसा हो जिस पर समाज का या कुटुम्ब का भार हो, मरने के पहिले वह कुछ गुप्त रहस्य प्रकट करना चाहता हो, या कुटुम्ब की आर्थिक आदि व्यवस्था कर जाना चाहता हो तो ऐसी हालत में भी उसको मिथ्या बोलकर भ्रम में डाले रहना उसका और समाजका घोर अपराध करना 1 | अथवा यह सम्भव है कि रोग की असली अवस्था मालूम हो जाने से वह दूसरा उपाय निकालना चाहता हो जिसमें वह सफल हो सके । ऐसी अवस्था में असली हालत छुपाये रखना अनुचित है । इस असत्य का भुक्तभोगी तो मैं ही हूँ । मेरी पत्नी को अस्थिक्षय था परन्तु प्रमादी और अज्ञानी डॉक्टरों ने मुझ से जरा भी जिकर न किया और बार बार ऑपरेशन करके कंधे के नीचे की हड्डी काटते रहे । मुझे रोगजगत् का अनुभव तो नहीं था किन्तु कुछ घटनाओं के सुनने से मुझे यह अच्छी तरह मालूम था कि अस्थिक्षय ऑपरेशनों से कभी नहीं जाता । अगर मुझे पहिले ही रोग का परिचय करा दिया होता तो मैं कभी ऑपरेशन न करवाता । परन्तु बड़ी मुश्किल से यह बात मुझे एक साल बाद मालूम हुई । लेकिन उस समय तक शिकारी डॉक्टरों ने रोगी का कई बार शिकार कर लिया था, फिर भी मैंने हिम्मत न हारी और डॉक्टरी जगत् को लम्बासा प्रणाम करके जलचिकित्सा का अध्ययन किया और उससे रोगी को इस हालत में ले आया जिसमें कोई डॉक्टर न ला सकता । मेरे एक चिकित्सक और अनुभवी डॉक्टर ने मेरी पत्नी को देखकर हँसते हँसते कहा कि अब तुम भी डॉक्टर हो गये हो । फिर भी ऑपरेशन ने ज
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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