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________________ अतिचार ] [ ३४१ है । ४ - कोई मनुष्य अपने यहाँ कोई चीज़ रख गया हो और भूल से कम माँगे, तो जानते हुए भी उसका अनुमोदन करना । ५ - चुगली खाना | वास्तव अचार्याणुव्रत -- १- किसी को चोरी के लिये प्रेरित करना । में यह अनाचार ही है । २ - चोरी का सामान लेना । ३मापने तालने के साधन न्यूनाधिक रखना । यह भी अनाचार है । ४ - अधिक मूल्य की वस्तु में हीन मूल्य की वस्तु मिलाकर बेचना | श्री में चत्र मिलाना, पूछने पर झूठ बोलना आदि अवस्था में यह अनाचार ही है । ५-सामान पर टैक्स वगैरह न देना | सत्याग्रह में चोरी की वासना न होने से वह अतिचार नहीं है । ब्रह्मचर्याणुव्रत - १.दुमरे की सन्तति का विवाह कराना | इसको अतिचार मानना निवृत्ति मार्ग का अतिरेक है । जिस कारण से अपनी सन्तान के विवाह का आयोजन करना उचित हैं, उसी कारण मे दूसरे की सन्तान का विवाह करना भी उचित है | पीछे के लेखकों को इसकी अतिचारता खटकी भी है, इसलिये उनने इसका दूसरा अर्थ किया है कि एक अपनी दूसरी शादी करना परविवाह करण अतिचार हैं । इस अर्थ की दृष्टि से बहुपत्नी के रिवाज वाले देश में यह अतिचार माना जा सकता है । जहाँ बहुत्व की प्रथा नहीं है, वहाँ तो यह भी पत्नी के रहने पर मैं यदा तु स्वदारसन्तुष्टो विशिष्टताभावात् अन्यस्कलत्रं परिणयति नदाप्यस्यायमतिचरः स्यात् । परस्य वनान्तरस्व विवाह व रणमात्मना विवाहनम् । - सागारधर्मामृत ४-५८
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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