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सल्लेखना
[३३३ रहता है । तप को भी दैनिक कृत्य बनाने की आवश्यकता नहीं है। किसी की इच्छा हो तो वह भले ही करे । इस प्रकार नित्यकृत्यों की संख्या तीन रह जाती है-प्रार्थना, स्वाध्याय और दान । प्रार्थना का सम्बन्ध सम्यग्दर्शन से है, स्वाध्याय का सम्बन्ध ज्ञान से है और दान का सम्बन्ध सम्यक्चारित्र से है । इस प्रकार ये तीन दैनिक कृत्य उपयोगी भी है, सरल भी है । जीवन के किसी कार्य' में विशेष बाधा डाले बिना-इनका अच्छी तरह से पालन किया जा सकता है, इसलिये इनका पालन अवश्य करना चाहिये ।
सल्लेखना। जैनधर्म में बतों के प्रकरण में सल्लेखना का भी उल्लेख किया जाता है । यह मत्युसमय की क्रिया है तथा मुनि और श्रावक कोई भी इसे कर सकता है, इसलिये इस व्रत का अलग विधान किया गया है। यद्यपि किसी ने इसे शिक्षा-व्रतों में भी गिना है जैसा कि पहिले कहा जा चुका है-परन्तु अधिकांश लेखकों ने इसे अलग ही रक्खा है।
जिस समय मृत्यु का निश्चय हो जाय अथवा कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाय कि मृत्यु को स्वीकार किये बिना कर्तव्य. भ्रष्टता से बचने का दूसरा कोई उपाय न हो, उस समय अपने कर्तव्य की रक्षा करते हुए जीवन का उत्सर्ग कर देना सल्लेखना है ।
बहुत से धर्मों में इस प्रकार के जीवनोत्सर्ग का विधान पाया जाता है। कहीं जल में डूबने, कहीं पर्वत से गिरने अथवा किसी दूसरे रूप से प्राणों के उत्सर्ग करने का विधान है। परन्तु