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________________ ३१२] [ जैनधर्म-मीमांसा .मार्ग पर बहुत अधिक भार डाल देने से जो आवश्यक प्रवृत्ति पर . भी अवहेलना हो गई है-उसे दूर करके अनर्थदण्ड का त्याग करना चाहिये। हिंसादान-हिंसा करने के लिये उसके साधनों का दान करना हिंसादान है। जिन चीजों से हिंसा हो सकती है-उनका दान करना हिंसादान नहीं, किन्तु हिंसा के लिये उनका दान करना हिंसादान है । अनेक लोग हिंसादान के नाम पर अपने पड़ौसी को या किसी अपरिचित को रसोई बनाने के लिये भी अग्नि नहीं देते; यह भूल है। केवल शस्त्र का विचार न करना चाहिये, किन्तु उसके उपयोग का विचार करना चाहिये । शाक बनाने के लिये अगर कोई चाकू मांगे तो चाकू देना यह हिंसादान नहीं है किन्तु किसी को मारने के लिये चाकू देना हिंसादान है। हाँ, कभी कभी हिंसा, अहिंसा होती है, जैसा कि पहिले कहा जा चुका है। ऐसी अवस्था में हिंसा के लिये दान भी. हिंसादान नहीं है। एक स्त्री को इसलिये कटार दी जाय कि अगर उसके सतीत्व पर कोई आक्रमण करे तो उससे वह आत्मरक्षा करे, तो यह हिंसादान नहीं है। इस प्रकार के उचित हिंसादान को अनयंदंड न कहना चाहिये, और न इस विषय में यह विचार करना चाहिये कि यह दान परिचित के लिये है या अपरिचित के लिये ! जैन लेखकों ने हिंसादान के विषय में भी यह कहा है कि पारस्परिक व्यवहार के
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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