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द्वादशानुप्रेक्षा ]
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आश्रव - दुःख के कारणों पर विचार करना आश्रव
भावना है ।
संवर- दुःख के कारणों को न आने देने या उनके रोकने के विषय में विचार करना संवर-भावना है ।
निर्जरा- आये हुए दुःख को किस प्रकार दूर किया जाय, सहन किया जाय, आदि विचार करना निर्जरा-भावना है।
आश्रव संवर निर्जरा भावना की सामग्री प्रथम अध्याय में लिखी गई है । इस अध्याय में भी सदाचार के जो नियम हैं - वे भी उपयोगी है। तथा तीसरे अध्याय में सम्यग्दर्शन के वर्णन में भी बहुत-सी सामग्री है ।
लोक- विश्व बहुत महान है; उसमें हमारी कीमत एक अणु सरीखी है, इसलिये छोटो छोटो बातों को लेकर अहंकार करना व्यर्थ है, आदि विचार लोक - भावना है ।
विश्व तीन सौ सैंतालीस राज का है ! पुरुषाकार है या गोल या अनिर्दिष्ट संस्थान : इत्यादि भौगोलिक विचार लोक भावना के विषय नहीं है । अथवा भौगोलिक दृष्टि से जिसको जैसे विचार रखना हो रक्खे, परन्तु भौगोलिक दृष्टि को मुख्यता न देवे । मुख्यता इसी या ऐसे ही विचार को देना चाहिये कि जिससे विनय शीलता आदि गुणों को उत्तेजना मिले । विश्व के विषय में विचार करने से जो एक कौतूहल, हर्ष तथा जीवन के क्षुद्र स्वार्थों पर उपेक्षा पैदा होती है, जिससे पाप करने में उत्साह नहीं रहता, बड़ी बड़ा लाभ है।