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[जैनधर्म-मीमांसा स्त्रियाँ कैसे सहन कर सकती हैं ? खेर, किसका नग्न दर्शन आपत्तिरहित है, और किसको नहीं-इस विषय की संक्षेप में मनोवैज्ञानिक मीमांसा कर लेना चाहिये ।
___बात यह है कि जिन के मिन चिन्हों को देखकर रतिकर्म की अत्यधिक स्मृति होती है, उनको देखने का त्याग कराया जाता है । पशुओं के माय मनुष्य का कोई लैंगिक सम्बन्ध न होने से उनको नग्न देखकर के भी हमारी वह स्मृति जागृत नहीं होती या अत्यल्प जागृत होती है, इसलिये पशुओं की नग्नता विचारणीय नहीं है । बालक के विषय में भी यही बात है । पशुओं में जहाँ जातीय विषमता है, बालकों में वहाँ परिमाण लघुना से विषमता है । यह विषमता रति-कर्म की स्मारकता को शून्य-प्राय कर देती है, इसलिये पशु और बालकों की नग्नता असह्य नहीं होती। साधु के विषय में यह बात नहीं कही जा सकती । वह भले ही वीतराग हो, परन्तु उससे उसके अङ्ग नी मिट जाते, उनकी स्मारकता नहीं चली जाती।
प्रश्न-नग्नता का प्रश्न सिर्फ वेग का ही प्रश्न नहीं है, किन्तु निष्परिग्रहता का भी प्रश्न । मुनि को पूर्ण अपरिग्रही होना आवश्यक है, जब कि कपड़ा रखने से पूर्ण निष्परिग्रहता का पालन नहीं हो सकता । .
उचर-अपरिग्रह-व्रत का विवेचन पहिले इसी अध्याय में किया जा चुका है । उससे मालूम हो जाता है कि अगर आसक्ति न हो, संग्रह करने की वासना न हो तो 'कपड़ा' परिग्रह नहीं कहला सकता । अनासक्ति की अवस्था में कपड़ा' दया तथा खाम्य