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________________ मुनिसंस्था के नियम ] [१८५ जिनका नाम आया है परन्तु जिनका पालन मूल-गुणों के समान होता है । जैसे दिगम्बर सम्प्रदाय के मूल गुणों में रात्रि भोजन त्याग नहीं है परन्तु कोई मुनि रात्रि-भोजन नहीं कर सकता । इसी प्रकार केशलोंच, स्नान नहीं करना, दतान नहीं करना, इन का नाम श्वेताम्बर मूल-गुणों में नहीं आया है, परन्तु प्रत्येक श्वेताम्बर मुनि को इनका पालन मूल-गुणों के समान ही करना पड़ता है । खैर, देखना यह है कि इन मूल-गुणों में अब कितने रखने लायक हैं और कितने अब बिल्कुल निकम्मे है और कितने अच्छे होकर के भी मूल गुणों की नामावलि में रखने लायक नहीं हैं । 1 पाँच व्रत - सच पूछा जाय तो मुनियों के मूल - गुण अहिंसा आदिक पाँच व्रत ही हैं । परन्तु इनके पालन का रूप परिवर्तनीय है | अहिंसा आदि का विस्तृत विवेचन पहिले किया गया है, उसी के अनुसार मुनि को अहिंसा का पालन करना चाहिये । अहिंसा के नाम पर पृथ्वीकाय, जलकाय आदि की रक्षा के जो सूक्ष्म नियम हैं। अनावश्यक हैं; वे मूल - गुण में नहीं रखे जा सकते । हाँ, अगर. किसी कर्तव्य में बाधा न आती हो तो यथाशक्ति उनका पालन किया जाय तो कोई हानि नहीं है । स्वास्थ रक्षा आदि का खयाल न रखकर उन नियमों का पालन करना अनुचित है । 1 पहिले जो अहिंसा आदि का विवेचन किया गया है उसमें अहिंसा, सत्य और अचौर्य की जो व्याख्या की गई है वह गृहस्थ और साधु दोनों को एक सरीखी है। साधु और श्रावक में जो भेद होगा वह किसी ख़ास कार्य द्वारा विभक्त नहीं किया जा सकता
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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