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जैनधर्म-मीमांसा करना इतना आवश्यक है ? क्या समाज बिना किसी कष्ट के इतनी सुविधा देने को तैयार है ? सेवक व्याक्ति इसके लिये सीधी या टेढ़ी रीति से किसी को विवश तो नहीं कर रहा है ! अहंकार से तो वह ऐसा नहीं कर रहा है ! इसी प्रकार के प्रश्न अन्य दरुपयोगों के विषय में भी करना चाहिये । इन प्रश्नों के उत्तर से वास्तविकता का पता लग जायगा ।
नीति तो सिर्फ मार्ग बतला सकती है । उसका ठीक पालन करना हमारी शुद्ध बुद्धि पर निर्भर है।
Y~ आत्म-रक्षा के लिये लकड़ी आदि के रखने की आवश्यकता हो तो वह भी पारग्रह नहीं है । मार्ग आदि चलने में लकड़ी आदि से बहुत सहायता मिलती है, इसलिये अगर कोई लकडी रखेगा तो वह परिग्रह न कहलायगी । हाँ, अगर वह उस से हिंसा करेगा तो अवश्य परिग्रह हो जायगी, क्योंकि अब उसका लक्ष्य आत्म-रक्षा न रहा।
प्रश्न-पशुओं वगैरह से आत्म-रक्षा करने के लिये लकड़ी रखना परिग्रह है या नहीं ? अथवा आर वह आत्म-रक्षा के लिये लकड़ी का प्रयोग को, पशु को कदाचित मार भी दे तो फिर उसे परिग्रह कहेंगे या नहीं ?
उत्तर-यह प्रश्न हिंसा-अहिंसा से सम्बन्ध रखता है। प्रत्येक बाह्य हिंसा को हम हिंसा नहीं कह सकते, इस बात का विचार करके ही हम उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं । मनुष्य के समान पशुओं के भी आत्मा है इसलिये उन्हें नहीं सताना चाहिये, परन्तु वे अपनी भाषा नहीं समझते इसलिये लकड़ी