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________________ १२२] [जैन-धर्म-मीमांसा । . . शंका विधवा विवाहसे जो मैथुन होता है उसे आत किसमें शामिल करेंगे ! समाधान-विधवा-विवाह हो या कुमारी-विवाह हो, अब स्त्री पुरुष बिना चोरी के तथा स्वेच्छापूर्वक एक दूसरे को स्वीकार कर लेते हैं तब उसमें परस्रीत्व या परपुरुषत्व रह ही नहीं जाता वे दोनों दम्पति बन जाते हैं। दाम्पत्य जीवन का मैथुन तो आरम्भी मैथुन है यह पहिले कहा जा चुका है। इस विषय का विशेष विवेचन आगे भी किया जायगा । __ शंका -विधवा विवाहको आप आरम्भी मैथुन भले ही कहें परन्तु नियोगको अप आरम्मी मैथुन कैसे कह सकते हैं, क्योंकि निगेग में तो विवाह भी नहीं होता ? जब किसी कुटुम्ब में कोई सधवा स्त्री नहीं रहती और विधवाएँ नि:सन्तान होती हैं तब वंशरक्षाके लिये उन विधवाओं का या विधवा का किती योग्य पुरुष से संयोग कराया जाता है इसे नियोग कहते हैं। यह बात स्पष्ट है कि इसमें परपुरुष से प्रयोग कराया जाता है, इसलिये इसे व्यभिचार की तरह संकल्पी मैथुन ही कहना चाहिये । समाधान --नियोग की प्रथा विधवा-विवाह और कुमरी विवाह की अपेक्षा भी अधिक पवित्र है । मयुक्त दोनों विवाहों में तो सन्तानोत्पत्ति आदि के साथ मर्यादित भोग-लालसा भी है, परन्तु नियोग तो शुद्ध वशंरक्षा के उद्देश से ही किया जाता है। सन्तानोत्पत्ति तक ही वह सीमित है। महाभारत के अनुसार पांडु धृतराष्ट्र और विदुर इसी प्रकार नियोग से पैदा हुए थे। यह बात
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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