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ब्रह्मचर्य
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प्रश्न-जब तक इन सवृत्तियों का प्रभाव तीव्र रहता है तभीतक वे मैथुनकी वासना परिवर्तित करती रहती हैं, परन्तु कोई भी सवृत्ति सदैव तीव्र नहीं रह सकती । ज्योंही उसमें कुछ मन्दता. आयगी, मैथुनकी वासना अपने ही रूमें काम करने लगेगी।
उत्तर-ऐसे भी कुछ असाधारण लोकोत्तर व्यक्ति होते हैं या हो सकते हैं जिनकी सद्वृत्तियाँ सदैव इतनी तीव्र बनी रहती हैं जिससे कामवासना परिवर्तितरूपमें ही बनी रहे वह बात अवश्य है कि ऐसे व्यक्ति करोड़ोमें एकाध ही होते हैं, परन्तु होते हैं । फिर भी यह राजमार्ग नहीं कहा जा सकता इस. लिये उचित यही है कि इस प्रकार तीव्र वेग के समयमें विवाहित जीवन बिताया जाय । आजकल के हिसाबसे पचास वर्ष तककी उमर तक इस प्रकार जीवन बिताना चाहिये । इतना समय तो बहुत ही पर्याप्त है, परन्तु इससे भी कम समयमें इस वासनाका वेग इतना मंद हो सकता है जो कि सरलतासे दूसरी सद्वृत्तियों के रूपमें परिवर्तित किया जा सके।
मैथुनकी वासनाका वेग सामाजिक परिस्थति पर भी निर्भर है। कई प्राचीन जातिय ऐसी भी हैं जिनमें कामवासनाकी आर्थर्यजनक मन्दता पाई जाती है । स्त्रियों का मासिकधर्म कामवासनाका ही सूचक है परन्तु ऐस्किमो आदि जातिकी स्त्रियों के वर्षों तीन बार ही ऋतुकाल आता है । इसी प्रकार पुरुष भी कामका आवेम कम होनेसे शीघ्रही स्खलितवीर्य नहीं होते । ये सब बातें वंशपरम्पराका फल है। परन्तु जिन लोगों को यह परिस्थिति प्राप्त नहीं है वे