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________________ ब्रह्मचर्य। तब वे अपनी पत्नी या बेटी सहवासके लिये उपस्थित करते हैं । मेहमान अगर इस भेंटको अस्वीकार करदे तो इसमें वह घोर अपमान समझता है । चुकची जातिमें भी ऐसा ही रिवाज़ है। और यही हाल उत्तरी एशियाकी कमैडल और अलीढस जातियोंका है। एस्किमो जातिमें दो एक रात्रिके लिये दो मित्र अपनी स्त्रियोंको बदल लेते हैं । इस प्रकार अपनी स्त्रीको मित्रके हवाले करना मित्रताकी पराकाष्ठा समझी जाती है। ऐसा मालूम होता है वि भारतवर्ष में भी ऐसा रिवाज था । यहाँ भी मित्रको पत्नी समर्पित करके मित्रताको पराकाष्टा बन्लाई जाती थी। इसलिए इस पकारके चरित्रों का चित्रग जैनपुराणांमें भी पाया जाता है । विमलमूर के 'पउमचरिय' और रविषेणाचार्य के पद्म चरितमें दो मित्रों की ऐसी ही कथा है । यद्यपि इस प्रकार पत्नीप्रदानको जैनाचार्य अच्छा नहीं समझते, फिर भी इससे इतना तो मालूम होता है कि यहाँको समाज में कहीं और कभी ऐसे रिवाज़ होगे तभी ऐसा चित्रण किया है, भलेही वे घी से निंदनीय होगये । खैर, वह कथा इस प्रकार है। सुमित्र और प्रभव नाम के दो मित्र थे । सुमित्र महाराजा था और प्रभव मामूली आदमी । परन्तु सुनिनने वन देकर उसे श्रीमान् बनादिया था । एक बार सुमित्र एक जंगल में पहुँच गया । वहाँ एक भीलने उसके साथ अपनी लड़की (बनमाला ) का विवाह कर दिया । इस नवविवाहिता पनिको देख कर प्रभवको काम जर होगया । सुभित्रने जब बीमारी का कारण प्रभवसे पूछा तो उसने
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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