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________________ ब्रह्मचर्य [१०१ इस विषयमें ज्यों ज्यों सुगर होता गया त्या त्यों हमारे साहित्यमें इन सुधरे रूपोंके वर्णन बढ़ते गये और पुराने रिवाजों के वर्णन नष्ट होगये । फिर भी ना कुछ बचे हैं, वे कुछ कम नहीं हैं । परन्तु जिन देशों और जातियों में इस प्रकार के सुधार नहीं हुए उनमें मैथुन सम्बन्धी स्वच्छन्दता अब भी पाई जाती है । हमारे पड़ोसी तिब्बतमें जिसे संस्कृतमें स्वर्ग त्रिविष्टप कहते हैं, आजभी एक एक स्त्री अनेक पति रखती हैं। बेबीलोन शहर आजसे पाँचहज़ार वर्ष पहिले एक प्रसिद्ध नगर था, जो भूगर्भस्थ होगया । उसकी खुदाई बहुत वर्षोमे होरही है, जिससे हजारों वर्ष पुराने सामाजिक जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है। खुदाईमें कई शिलास्तूप मिले है जो चारहजार वर्ष पुराने हैं और जिनमें उस समय के कानून बुदे हुए हैं । इससे मालूम होता है कि उस समय वहाँ देशका प्रत्येक स्त्री को वह अौर हा या गरीब-जीवनमें एकबार वेश्या अवश्य बनना पड़ताया । माता पिता अपनी लड़कियोंको और पति अपनी पत्नी को पैसा ठहराकर परिमित समय के लिये दूसरोके हवाले कर देतेथे । वहाँपर स्त्रियाँ एकही साथ अनेक पतियों के साथ शादी करती थीं । पाछेसे उरुकागिना नामके एक सुधारक राजाने बहुपतित्वकी यह प्रथा बन्द करदी। __ सीथियन जातिमें प्रत्येक स्त्री प्रत्येक पुरुषकी पत्नी है । इस प्रथासे वे लोग यह बड़ा लाभ समझते हैं कि इससे सब पुरुष आपसमें भाई भाई होकर रहेंगे । कौरम्बा जातिमें भी ऐसाही अभेद
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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