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जैनधर्म-मीमांसा
छटा अध्याय मम्यक् चारित्र
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सम्यक्चारित्र का रूप
कल्याणमार्ग का तीसरा अंश सम्यकचारित्र है । सम्यदर्शन और मान्यग्ज्ञान सम्यक चारित्र के लिये हैं इसलिये जबतक चारित्र न हो तबतक दर्शन ज्ञान निष्फल ही समझना चाहिये।
जिस तत्त्व पर विश्वास किया था, जिस तत्व को जाना था उसका आचरण सम्यक चारित्र है । तीनों का विषय एक ही है । कल्याण के मार्ग पर विश्वास, कल्याण के मार्ग का अच्छी तरह जानना, कल्याण के मार्ग पर चलना यही रत्नत्रय है। अन्य वस्तुओं को तुमने जान लिया विश्वास भी कर लिया परन्तु यदि वे आचार के लिये उपयोगी न हुई तो उनसे सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का कोई सम्बन्ध नहीं । यही कारण है कि सम्यग्ज्ञान की पूर्णता के लिये समस्त पदार्थों को जानने की जरूरत नहीं है सिर्फ