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________________ पहिला युक्त्याभास शीर्षक में भी इसका स्पष्टीकरण किया गया है। इसलिये प्रत्यक्षता सिद्ध होने पर भी उससे सर्वज्ञता सिद्ध नहीं हो सकती। खर, प्रत्यक्षत्व और अनुमेयत्व की व्याप्ति के विषय में सब बातें अलग भी करदी जाँय तो भी सर्वज्ञत्व साधक उपयुक्त अनुमान निरर्थक ही है क्योंकि समस्त पदार्थ अनुमान के विषय नहीं हैं। जसे कोई पुद्गल पिंड है उसके विषय में हम इतना तो जान सकते हैं कि इसमें असंख्य ( या जैनियों क शब्दों में अनंत ) अणु हैं । इस प्रकार पिंड का असंख्य-प्रदेशित्व नामक एक धर्म जान लिया किन्तु प्रत्येक प्रदेश को हम अनुमान से भी नहीं जान सकते त्रिकाल त्रिलोक के प्राणियों के अनुमान भी इकट्ठे हो जाँय तो उन असंख्य प्रदेशों का अनुमान नहीं कर सकेंगे । यह बात तो तब हो सकती है कि हम प्रत्येक परमाणु के कार्य आदि का अलग अलग प्रत्यक्ष कर सकें और उसे साधन बना कर उस अणुको अनुमेय बनावें । सूक्ष्मादि पदार्थों में वे ही अनुमेय हो सकते हैं जिनके कार्यादि इतने स्थूल हों जिन्हें प्रत्यक्ष से जाना जा सके बाकी अनुमेय नहीं हो सकते । इस प्रकार सब पदार्थ जब अनुमेय नहीं हैं तब प्रत्यक्षत्व-सिद्धि कैसे होगी । प्रश्न--सब अनेकान्तात्मक हैं क्योंकि सब सत् स्वरूप हैं इस अनुमान के द्वारा तो जगत के सब पदार्थ अनुमेय हो सकते हैं। - उत्तर--इससे जगत का अनेकान्तात्मकत्व नामक एक धर्म अनुमेय हो सकता है सारा जगत् नहीं ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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