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________________ ५०] चौथा अध्याय उत्तर--अभिन्न तो हैं परन्तु उनमें सर्वथा अभिन्नता नहीं है । उनमें अंश अंशीका भेद निश्चित है। यदि उनमें सर्वथा अभेद माना जायगा तो हरएक आदमी सर्वज्ञ या अनन्तदर्शी हो जायगा । क्योंकि किसी द्रव्य की एकाध पर्याय को तो हरएक आदमी जान सकता है और उस पर्याय का द्रव्य से अभेद होने से वह द्रव्य की अनन्त पर्यायें भी जान सकेगा। इस प्रकार हरएक आदमी को अनन्तज्ञ होना चाहिय; परन्तु ऐसा नहीं है। इसलिये मानना चाहिये कि किसी पर्याय के प्रत्यक्ष हो जाने से समग्र द्रव्यका अर्थात् उसकी भूतभविष्यकी अनंत पर्यायों का प्रत्यक्ष नहीं होता है । इसलिये वर्तमान पर्यायों का प्रत्यक्ष भूतभविष्य की अनन्त पर्यायों का प्रत्यक्ष नहीं कहला सकता । प्रश्न--हम लोगों को भी एक अवस्था को देखकर दूसरी अवस्था का ज्ञान होता है इसलिये केवली भी वर्तमान की एक पर्याय का प्रत्यक्ष करके भविष्य की अनंत पर्यायों का प्रत्यक्ष करलें तो इसमें क्या आश्चर्य है ? उत्तर--एक अवस्थाको देखकर जो दूसरी अवस्थाका ज्ञान किया जाता है वह प्रत्यक्ष नहीं अनुमान या परोक्ष कहलाता है परोक्ष में हम वस्तु को सामान्य रूप में जान सकते हैं, सब पदार्थों का पृथक् पृथक् ज्ञान नहीं कर सकते । प्रत्येक पर्याय को जानने के लिये हमें जुदा जुदा अनुमान करना पड़ेगा और इसमें अनन्तकाल व्यतीत हो जायगा । तब मी एक द्रव्यकी अनंत पर्यायों को कोई न जान सकेगा । सामान्य रूप में सब वस्तुओं को
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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