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________________ असत् का प्रत्यक्ष असम्भव [ ४९ उत्तर -- अतीन्द्रिय सुख इन्द्रिय सुख से महान है स्वाधीन है। उसे विषयों की आवश्यकता नहीं इसलिये उसमें विषयसुख भी नहीं है, भले ही विषय सुख से बढ़कर आत्मसुख हो। इसी प्रकार अतीन्द्रिय ज्ञान में घटपटादि प्रत्यक्ष नहीं हैं भले ही उससे ऊँचा स्वात्मप्रत्यक्ष हो । केवलज्ञान को पर पदार्थो को जानने की ज़रूरत नहीं है वह सर्वोच्च श्रेणी का आत्मप्रत्यक्ष है यही कहना चाहिये । केवलज्ञान के विषय में त्रिकाल त्रिलोक के समस्त पदार्थ ठूसने का विफल प्रयत्न न करना चाहिये । अतीन्द्रिय सुख के समान अतीन्द्रिय ज्ञान भी स्वात्मविषयक है यही मानना ठीक है । प्रश्न- भूतभविष्य पर्यायों का अस्तित्व भले ही न हो, परन्तु जिस द्रव्य की वे पर्यायें होती हैं उसका अस्तित्व तो सदा होता है । इसलिये जब किसी द्रव्य का प्रत्यक्ष किया जाता है तब उसमें भूतभविष्य की अनन्त पर्यायें भी शामिल हो जाती हैं । इसलिये एक द्रव्य का पूर्ण प्रत्यक्ष कर लेने पर भूतभविष्य की अनंत पर्यायों का भी प्रत्यक्ष हो जाता है । उत्तर--एक द्रव्य के पूर्ण प्रत्यक्ष होने पर अनंत पर्यायों का प्रत्यक्ष हो, यह बिलकुल ठीक है परन्तु आपत्ति तो यह है कि एक द्रव्य का ऐसा पूर्ण प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । उसके वर्तमान अंश का ही प्रत्यक्ष हो सकता है क्योंकि वही सत्रूप हैं । प्रश्न- वर्तमान अंश के प्रत्यक्ष होने से उसके भूत भविष्य अंशों का भी प्रत्यक्ष हो जाता है क्योंकि सभी पर्यायें द्रव्य से अभिन्न हैं ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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