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________________ ४२] चौथा अध्याय पूर्व की अवस्था का भी प्रत्यक्ष नहीं हो सकता क्योंकि माध्यम की अपेक्षा वह पाव घंटा भविष्य है । क्षेत्र से व्यहित पदार्थ वहीं तक प्रत्यक्ष होता है जहां तक किरण आदि के माध्यम द्वारा अव्यवहित बन जाय इसी प्रकार कालसे व्यवहित भी तभी प्रत्यक्ष होता है जब किरणादि माध्यमके द्वारा उसका व्यवधान मिट जाय । जिसके काल व्यवधान को दूर करने वाला कोई माध्यम नहीं है उसे असत् कहते हैं । भविष्य पदार्थ के लिये तो माध्यम मिल ही नहीं सकता क्योंकि वह तो अभी सत्ता में ही नहीं आया है इसलिये उसका प्रत्यक्ष तो असम्भव है । रहा भूत सो भूत उसी क्षण में प्रत्यक्ष हो सकता है जिस क्षणसे सम्बद्ध माध्यम वर्तमान में इंद्रियों से मिल रहा है उससे अधिक भूत सर्वथा भूत होने से असत् है और उससे बाद का भूत भविष्य है क्योंकि उससे सम्बद्ध माध्यम इन्द्रियों से मिल सकने वाला है अर्थात् वर्तमान हो सकने वाला है। मतलब यह कि वर्तमान एक ही क्षण है उससे आगे पीछे भूत भविष्य है । भूत का अर्थ है जो हो गया भविष्य का अर्थ है जो होनेवाला है, हैं दोनों ही नहीं, इसलिये असत् हैं और असत् का प्रत्यक्ष नहीं होता। केवली के द्वारा एक समय में किसी पदार्थ की कोई एक ही पर्याय माध्यम द्वारा मिल सकती है इसलिये उसी का प्रत्यक्ष हो सकता है बाकी आगे पीछे की अनन्त पर्यायों का प्रत्यक्ष माध्यम के अभावके कारण नहीं हो सकता । क्षेत्र में भी जहां माध्यम नहीं मिलता वहाँ प्रत्यक्ष नहीं हो सकता।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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