SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४१ असत् का प्रत्यक्ष असम्भव असत् का प्रत्यक्ष असम्भव केवलज्ञान की प्रचलित परिभाषा में दूसरा दोष यह है कि उसमें असत् का प्रत्यक्ष मानना पड़ता है जो कि असम्भव है । जो वस्तु है ही नहीं उसका प्रत्यक्ष कैसे हो सकता है ? अगर असत् का प्रत्यक्ष होने लगे तो गधे के सींग का भी प्रत्यक्ष होने लगे । भूत और भविष्य के पदार्थ हैं ही नहीं तब उनका प्रत्यक्ष कैसे हो सकता है ? प्रश्न -- जब हमें दूरके पदार्थों का प्रत्यक्ष हो सकता है तब भूत भविष्य के पदार्थों का प्रत्यक्ष क्यों नहीं हो सकता ? व्यवधान तो दोनों जगह है एक जगह क्षेत्र का व्यवधान है तो दूसरी जगह काल का । उत्तर - व्यवधान में प्रत्यक्ष नहीं होता यह सामान्य नियम है किन्तु जहां व्यवधान किसी माध्यम के द्वारा मिट जाता है वहां व्यवधान प्रत्यक्ष में बाधक नहीं होता । जैसे चन्द्र सूर्य तारे हमसे बहुत दूर हैं पर उनकी किरणें हमारी आँख पर पड़ती हैं इस प्रकार किरणों के माध्यम के द्वारा क्षेत्र का अन्तराल दूर हो जाता है इसलिये प्रत्यक्ष में बाधा नहीं है । इसी प्रकार जहां माध्यम के द्वारा काल का अन्तराल भी दूर हो जाता हो वहाँ भी प्रत्यक्ष में बाधा नहीं आती । जैसे कोई तारा ऐसा है जिससे किरण एक घंटे में आती है तो इस समय जो हमें तारे का प्रत्यक्ष होगा वह तारे की एक घंटा पूर्व की अवस्था का होगा । पर उस तारे की सवा घंटा पूर्व की अवस्था का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता क्योंकि माध्यम की अपेक्षा भी वह पात्र घंटा भूत हो गया है इसी 1 प्रकार पौन घंटा
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy