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________________ ३८० ] पाँचवाँ अध्याय श्रुतपरिमाण रुतज्ञान का परिमाण बहुत विशाल है। दोनों ही संप्रदायों में श्रुतज्ञान के जितने पद बताये गये हैं, उनका होना एक आश्चर्य ही समझना चाहिये । दिगम्बर संप्रदाय में रुतज्ञान के कुल एक अर्ब बारह करोड़ तेरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच पद हैं। किसी के व्याख्यानों का संग्रह इतना बड़ा हो, यह जरा आश्चर्यजनक है। है । परन्तु इससे भी आश्चर्यजनक है पदका परिमाण । पद कितना बड़ा है, इस विषय में नाना मुनियों के नाना मत हैं । दिगम्बर ग्रंथों में पद के तीन भेद हैं । अर्थपद वही है जो व्याकरण में प्रसिद्ध है। विभक्तिसहित शब्दको पद कहते हैं | अक्षरों के परिमित प्रमाण को प्रमाणपद कहते हैं, जैसे एक श्लोक में चार पद हैं इसलिये आठ अक्षर का एक पद कहलाया । तीसरा मध्यमपद है जो कि सोलह अर्ब चौंतीस करोड़ तेरासी लाख सात हजार आठसौ अठासी अक्षरों का होता है । दि० शास्रकारों ने श्रुतज्ञान का परिमाण इसी पदसे मापा है । इस प्रकार के विशालकाय पद अगर एक अर्बसे भी ऊपर माने जावे तो एक जीवन में इनका उच्चारण करना भी कठिन है । यदि कोई मनुष्य प्रत्येक मिनिट में दस श्लोक का उच्चारण करे और प्रतिदिन बीस घंटे इसी काम में लगा रहे तो सालभर में तेतालीस लाख बीस हज़ार श्लोकों का ही उच्चारण कर सकता है । म. महावीर को कैवल्य प्राप्त हुआ उसदिन से ४२ वर्ष तक इन्द्रभूति गौतम अगर इसप्रकार रचना करते रहते तो वे अठारह करोड़ चौदह लाख बयालीस हज़ार श्लोकों की रचना कर पाते, जब कि एक पदका परिमाण इकावन करोड आठ लाख चौरा
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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