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________________ श्रुतज्ञान के भेद [ ३७९ ११ - - महाकल्प्य -- इसमें जिनकल्प और स्थविरकल्प साधुओं के आचार, रहनसहन आदिका वर्णन है । १२ – पुंडरीक – देवगतिमें उत्पन्न करने वाले दानपूजा, तपश्चरण आदिका वर्णन है 1 १३ - महा पुंडरीक - इन्द्रादिपद प्राप्त करने योग्य तपश्चरण आदिका वर्णन है । १४ - निषिद्धिका - - वह प्रायश्वित्त-शास्त्र है। इसे निशी - थिका भी कहते हैं । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में अङ्गबाह्यके दो भेद किये गये हैं- आव-श्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त । जो क्रियायें अवश्य करना चाहिये उनका जिसमें वर्णन है वह आवश्यक है । इससे भिन्न आवश्यक व्यतिरिक्त हैं । इसके छः भेद हैं---सामायिक, चतुर्विशस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान । इनके विषय नामसे प्रगट हैं । आवश्यकव्यतिरिक्त दो तरहका है--कालिक, उत्कालिक । जो नियत समय पर पढ़ा जाय वह कालिक और जो अन्य समय पर पढ़ा जाय वह उत्कालिक | उत्तराध्ययन आदि कालिक हैं। दशवैकालिक आदि उत्कालिक हैं १ | श्वेताम्बरों में जो बारह उपांग प्रचलित हैं, वे भी अङ्गबाह्यके अन्तर्गत हैं । 1 (१) विस्तारभय से उन सबका वर्णन यहाँ नहीं किया गया है। नंदीसूत्र ४३ में विस्तृत वर्णन है । वहाँ कालिक कत के ३६ ग्रंथों के नाम लिखे हैं । फिर भी आदि कहकर छोड़ दिया है, इसी प्रकार उत्कालिक नाम लिखे हैं और आदि कहकर नामों की अपूर्णता बतलाई है । खतके भी २९
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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