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________________ श्रुतज्ञान के मेद ३०७ अनुमान से विरुद्ध न हो, [४] तस्वका उपदेश करनेवाला हो, [५] सब का हित करनेवाला हो, [६] कुमार्ग का निषेधक हो, वह शास्त्र है । परन्तु आज संसार में इतने तरह के सत्य-असत्य शास्त्र हैं, और वे सब अपना सम्बन्ध ईश्वर या किसी ऐसे ही महान व्यक्ति से बताते हैं कि श्रद्धा से काम लेने वाला व्यक्ति कुछ भी निर्णय नहीं कर सकता । किस शास्त्र का बनानेवाला आप्त था इसके निर्णय का कोई साधन आज उपलब्ध नहीं है । प्रश्न - उसके बचनों की सचाई से हम उसके सत्यवादीपन को जान सकते हैं । उत्तर- इससे दोनों में से एक का भी निर्णय न होगा । क्योंकि बक्ताकी सचाई से हमें उसके वचनों की सचाई का ज्ञान होगा और वचनों की सचाई से वक्ता की सचाई का ज्ञान होगा | यह तो अन्योन्याश्रय दोष कहलाया । प्रश्न- किसी के दस बीस वचनों की सचाई से हम उस की सब बातों की सचाई को मान लेंगे । उत्तर - दसबीस बातों की सचाई के लिये हमें उस की परीक्षा तो करना ही पड़ेगी। दूसरी बात यह है कि थोड़ी बहुत बातों की सचाई तो सभी शास्त्रों में मिलती है, सब अमुक शास्त्र को ही आतोक कैसे कह सकते हैं ! तीसरी बात यह है कि अगर दस बीस बातों की सचाई से उसकी सब बालों को सचाई का निर्णय किया जाय तो उसकी कुछ बातों के मिथ्यापन
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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