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________________ २२६ ] पाँचवाँ अध्याय सूत्र और नोइन्द्रिय ज्ञान नहीं होता इसलिये मनसे दर्शन नहीं माना जाता | नन्दी में प्रत्यक्ष के दो भेद किये हैं- इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष । इन्द्रिय प्रत्यक्ष के स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र के भेद से पाँच भेद हैं । नोइंद्रिय प्रत्यक्ष के अवधि, मन:पर्यय और केवल ऐसे तीन भेद हैं । (१) वहां मन से कोई ऐसा प्रत्यक्ष नहीं बतलाया गया जो मतिज्ञान के भीतर शामिल होता हो । अवधि, मनः पर्यय और केवलज्ञान नोइंद्रिय प्रत्यक्ष के भेद माने गये हैं परन्तु वे मतिज्ञान के बाहर हैं इसलिये मतिज्ञान को पैदा करने वाला कोई मनोदर्शन नहीं हो सकता जिसे अचक्षुर्दर्शन के भीतर शामिल किया जाय । प्रश्न- यदि आप मन से प्रत्यक्ष न मानेंगे तो मतिज्ञान के ३३६ भेद कैसे होंगे ! उत्तर- ३३६ भेद मतिज्ञान के हैं न कि प्रत्यक्ष ज्ञान के । मैं यह नहीं कहता कि मन से मतिज्ञान नहीं होता । मैं तो यह कहता हूं कि मनसे प्रत्यक्ष मतिज्ञान नहीं होता । ३३६ भेद सभी प्रत्यक्ष नहीं हैं । I ज्ञान के भेद / ज्ञान के पाँच भेद हैं । मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल । पाँच भेदों की यह मान्यता महावीर युग से लेकर अभी (१) पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं इंदिय पचखं नोइंदिय पच्चक्खं च |३| से कि तं इंदियपचखं ? इंदिय पच्चवखं पंचविहं पण्णत्तं तंजा-सांइदिअ पच्चक्खं, चक्खिदिअ पच्चक्खं, घाणिदिअ पच्चक्खं, जिसिदअ पचक्खं, फासिंदिअ पचस्वं स तं इंदियपच्चक्खं |४| से किं तं नोइंदिय पच्चवखं ? नोइंदिअ पचवखं तिविहं पृष्णत्तं तं जहा ओहिनाण पच्चक्वं मणाना पचक्ख केवलनाण पचखं |५|
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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