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चौथा अध्याय
विद्वानों को आगे बढ़ने से रोका है। सर्वज्ञत्व के वास्तविक स्वरूपको समझकर हमें अब प्रगति के मार्ग में बढ़ना चाहिये । इससे हम सत्य की रक्षा भी करते हैं, अनावश्यक अन्धविश्वास के बोझ से भी बचते हैं, और प्रगति के मार्ग में स्वतन्त्रता से आगे भी बढ़ते हैं ।