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महावीर और मोबालक [ १७२ यह कहना मिथ्या है । गोशालक को भी इस बात का समाचार मिला । अपनी बदनामी से उसे बहुत क्रोध [१] आया । इसी समय महात्मा महावीर के शिष्य आनन्द नामक स्थविरमुनि उसी रास्ते से निकले । उन्हें बुलाकर गोशालक ने कहा 'आनन्द ! तेरा धर्म-गुरु देव मनुष्य असुरों में [२] मेरी निन्दा करता है; अब अमर फिर वह निन्दा करेगा तो मैं उसे और उसके परिवार को राखका देर कर दूंगा' । आनन्द घबराये और म. महावीर से सब सनाचार कहा और पूछा कि क्या गोशालक ऐसा कर सकता है ? महावीर ने कहा कि वह जिनेन्द्र को नहीं मार सकता, परन्तु दूसरों को मार सकता है । इसलिये जाओ, तुम गौतम आदि से कहदो कि कोई गोशालक के साथ वाद विवाद आदि न करे ! इसके बाद गोशालक आजीवक संघ के साथ म. महावीर के पास आया और उसने कहा कि तुम्हारा शिष्य गोशालक तो मर के देव हो गया है, मैं तो उदायी मुनि हूं जो कि इस शरीर में आगया हूं । तुम मुझे अपना शिष्य मत कहो ! महावीर ने दृढ़ता से कहा---तुम उदायी नहीं हो किन्तु वहीं गोशालक हो । तब गोशालक ने महावीर को गालियां दी । तब सर्वानुभूति और सुनक्षत्र नामक मुनियों ने गोशालक को फटकारा । गोशालक ने दोनों को मारडाला और म. महावीर पर भी तेजोलेश्या ( कोई मान्त्रिक शक्ति या विषैली दवा ) से प्रहार किया। तेजोलेश्या लौटकर गोशालक को लगी, ( अथवा म. महावीरने अपने
१- तएण गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अन्तियं एयमहूँ सोचा निसम्मआनुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावण भूमीओ पच्चोमहइ ।
२- सदेवमणुकासुरे लोए .. ... ||