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________________ सर्वज्ञ शब्दका अर्थ 6: मुझसे क्या पूछते हो ? आपतो सब जानते हो ।" यहाँ पर भी जानने का विषय त्रिकाल त्रिलोक नहीं किन्तु [ १४० उतना ही विषय है जितना पूछने से जाना जा सकता है। वह सब शास्त्रों का विद्वान है " 66 यहाँ भी 'सब' शास्त्रों का अर्थ वर्तमान में प्रचलित सब शास्त्र हैं, न कि त्रिकालत्रिलोक के सब शास्त्र । “ उसके पास जाओ; वह तुम्हें सब देगा " । यहाँ ' सब' का अर्थ इच्छित आवश्यक और सम्भव वस्तु है न कि त्रिकाल त्रिलोक के सकल पदार्थ | (L कोई भला दामाद श्वसुर से कहे कि, आपने क्या नहीं दिया ? सब कुछ दिया ।" यहाँ पर भी 'सब' का अर्थ श्वसुर के देने योग्य वस्तुएँ हैं, न कि त्रिकालत्रिलोक के अनन्त पदार्थ । और भी बीसों उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिनसे मालूम होगा कि " सब " शब्दका अर्थ त्रिकालत्रिलोक नहीं, किन्तु इच्छित वस्तु है । हमें जितने जानने की या प्राप्त करने की आवश्यकता है उतने को ही 'सब' कहते हैं। जिसने उतना जाना या दिया, उसको सर्वज्ञ या सर्वदाता कहने लगते हैं । ऊपर मैंने बालचाल के उदाहरण दिये हैं परन्तु शास्त्रों में भी इस प्रकार के उदाहरण पाये जाते हैं । नीतिवाक्यामृत में लिखा है---- लोकव्यवहारज्ञो हि सर्वज्ञ : ' - - लोक व्यवहार को जाननेवाला ( अच्छी तरह जाननेवाला ) सर्वज्ञ है ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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