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________________ १४६ ] चाथा अध्याय पड़ीं हैं । परन्तु इतना करने पर भी असम्भव, सम्भव कैसे हो सकता है ? ये सब कल्पनाएँ कितनी थोथीं और प्रमाणविरुद्ध हैं इसका विवेचन यहाँ तक अच्छी तरह से किया गया है। ... "सर्वज्ञ" शब्दका अर्थ ।। सर्वज्ञता के विषय में जो प्रचलित मान्यता है वह असम्भव है-इस बात के सिद्ध कर देनेपर यह प्रश्न उठता है कि आखिर सर्वज्ञता है क्या ? " सर्वज्ञ" शब्द बहुत पुराना है और यह मानन के भी कारण हैं कि म. महावीर के ज़माने में भी सर्वज्ञ शब्द का व्यवहार होता था । यदि सर्वज्ञ का यह अर्थ नहीं है तो कोई दूसरा अर्थ होना चाहिये जो सम्भव और सत्य हो । सर्वज्ञ शब्द का सीधा और सरल अर्थ यही है कि सबको जाननेवाला । परन्तु 'सर्व' शब्द का व्यवहार अनेक तरह से होता है। जब हम कहते हैं कि 'सब आ गये; काम शुरू करो ।'. तब 'सब' का अर्थ निमंत्रित व्यक्ति होता है न कि त्रिकाल त्रिलोक के प्राणी या पदार्थ । इसीप्रकार 'हमारे शहर के बाज़ार में सब कुछ मिलता है। इस वाक्य में सब कुछ ' का अर्थ बाज़ार में बिकने योग्य व्यवहारू चीजें हैं, जिनकी कि मनुष्य बाज़ार से आशा कर सकता है; न कि सूर्य, चन्द्र, जम्बूद्वीप, लवण, समुद्र, माँ-बाप आदि त्रिकाल . त्रिलोक के सकल पदार्थ ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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