________________
जैनधर्म-मीमांसा
ऑपरेशन करे और रोगी मर जाय, इसपर डाक्टरको खूनीके समान मृत्यु-दण्ड दिया जाय, तो कितने डॉक्टर ऑपरेशन करनेको तैयार होंगे ? इसलिए अधिकतम सुखके लिए भावनाको प्रधानता देना आवश्यक है।
इस सबका सार यह है कि सार्वत्रिक और सार्वकालिक अधिकतम प्राणियोंके अधिकतम सुखकी भावनासे जो कार्य किया जाय वह कर्तव्य है और बाकी अकर्तव्य । इस तरह आधिभौतिक और आध्यात्मिकके सम्मिश्रणसे हमें कर्तव्याकर्तव्यके निर्णयकी कसौटी मिल जाती है; और अनेक तरहकी शंकाओंका समाधान हो जाता है । जैसे कि-रावणने सीताको चुराया, रामने युद्ध करके रावणके वंशका नाश कर दिया । अगर राम युद्ध न करते, तो राक्षस-वंशके लाखों मनुष्य मरनेसे बच जाते, सिर्फ राम और सीता इन दो व्यक्तियोंको दुःख होता और लाखोंको सुख ।
यद्यपि वर्तमानकी दृष्टि से यह घटना विपरीत नीतिकी सूचक है, परन्तु सार्वत्रिक विचारसे इसका निर्णय हो जाता है। इस घटनाको लक्ष्य करके अगर यह नियम बना दिया जाय कि अगर कोई किसीकी पत्नीको चुरा ले जाय तो उसे उसकी रक्षाके लिये विशेष प्रयत्न न करना चाहिये, तो इसका फल यह होगा कि प्रतिदिन हजारों लाखों स्त्रियोंका सतीत्व नष्ट होने लगेगा। यह दुःख एक बार युद्धमें मर जानेवाले सैनिकोंके दुःखकी अपेक्षा बहुत अधिक होगा। मतलब यह कि अन्यायका प्रतिकार करना एक बार भले ही अधिक प्राणियोंको दुःखद हो, परन्तु सदाके लिये वह सुखद है। समाजके भय तथा चिन्ताको रोकनेके कारण उसकी सुखदता और बढ़ जाती है।